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________________ 114 शिक्षाप्रद कहानिया अपनी आँखों के सामने ही अपने बच्चों को आग में भूनता देखकर मैं पल भर भी जीवित नहीं रह सकूँगी। अतः तुम एक काम करो कि पल भर भी गवाँये बिना अपने मित्रों को बुला लाओ। ऐसे आड़े वक्त ही मित्र काम आते हैं।' यह सुनकर कबूतर बोला- ठीक कहा तुमने। लेकिन, तम एक काम करो। येन-केन प्रकारेण तुम कुछ पल इन्हें अपनी बातों में उलझा लो। बस मैं यूँ गया और यूँ आया। कबूतरी ने अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करते हुए उन दुष्टों को कुछ देर इधर-उधर की बातों में उलझा लिया। जिससे उन्हें कुछ समय मिल गया। इतनी देर में कबूतर अपने दोनो सुहृदयों (मित्रों) के पास पहुँच गया और बन्दरिया व मधुमक्खियों को बुला लाया। तथा रास्ते मे सारी बातें उन्हें बता दी। इधर एक बहेलियाँ ऊपर चढ़ चुका था और घोंसले मे अपना हाथ डालने ही वाला था कि मधुमक्खियाँ बिजली जैसी फुर्ती दिखाते हुए झपट पड़ी बहेलिए पर। और उसके आँख, नाक, कान तथा शरीर का जो भी अंग उन्हें मिला उस पर अपने तीक्ष्ण डंक का प्रहार कर दिया। अगर वे क्षण-भर भी देर कर देती तो शायद ही बच्चों की जान बच पाती। डंक लगते ही बहेलिया तिलमिलाकर धड़ाम से नीचे आ गिरा। जैसे ही दूसरे बहेलिए, अपने साथी को उठाने के लिए दौड़े इतने में बन्दरिया ने उन दुष्टों की पोटली उठाई और भाग गई नदी की ओर। देखते ही देखते उसने पोटली को नदी में फेंक दिया। गठरी में उन दुष्टों की जीवन भर की कमायी थी। भला वे उसे बहते हुए कैसे देख सकते थे। वे भूल गए कबूतर के बच्चे और भागे नदी की ओर अपनी गठरी पकड़ने के लिए। देखते ही देखते वे कूद गए नदी में। संयोगवश उस दिन नदी का बहाव भी बहुत अधिक था। न जाने कहाँ गई उनकी गठरी और कहाँ गए वे बहेलिए। लेकिन मित्रों यह परम सत्य है कि मित्रों तथा कबूतर-कबूतरी के बुद्धिकौशल के कारण उनके बच्चों के प्राण बचे और वे बहेलिए फिर कभी वहाँ लौटकर नहीं आ सके।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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