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________________ 106 ऐसा होता है। कहा भी जाता है कि शिक्षाप्रद कहानियां परोपकाराय फलन्ति वृक्षाः, परोपकाराय वहन्ति नद्यः । परोपकाराय दुहन्ति गावः, परोपकारार्थमिदं शरीरम् ॥ वृक्ष परोपकार के लिए फल देते हैं, नदियाँ परोपकार के लिए बहती हैं, गायें परोपकार के लिए दूध देती हैं, यह शरीर भी परोपकार के लिए ही है, परोपकार के बिना शरीर की सफलता नहीं मानी जा सकती। तभी उस बालक ने सुना कि बाहर मुनादी हो रही है कि एक बालक जेल से भाग गया है। अगर कोई व्यक्ति उस बालक को पकड़वाएगा तो उसे पूरे पाँच हजार रुपये इनाम में मिलेगा। यह सुनकर बालक ने मन ही मन एक योजना बनाई और उस व्यक्ति से बोला कि आप मुझे पकड़वा दें और ईनाम की राशि ले लें। यह सुनकर वह व्यक्ति बोला- मैं अपने स्वार्थ के लिए तुम्हें पुलिस के हवाले कर दूँ, ऐसा करने को मेरा मन नहीं मानता। आखिर तुम भी तो किसी के बालक हो। बालक बोला- देखो, मुझे तो एक न एक दिन पकड़े ही जाना है और तुम न सही तो कोई और मुझे पकड़वाएगा। और इनाम वह ले लेगा। और मेरी कैद की अपेक्षा तुम्हारे पुत्र के प्राणों का मूल्य अधिक है। कैद तो एक न एक दिन खत्म हो ही जाएगी। लेकिन, अगर तुम्हारे के प्राण पुत्र चले गए तो वो दोबारा नहीं आ सकते। अत: तुम मुझे थाने में ले चलो। और अन्त में वह व्यक्ति बालक को पकड़वाने के लिए तैयार हो गया और उसने उसे पकड़वा भी दिया तथा इनाम भी ले लिया। अब इस बालक के मुकदमें की फाइल दोबारा खुल गई क्योंकि थानेदार नया आ गया था। वह पुनः सारी बातें पूछने लगा बालक से कि कैसे तुम बन्द हुए थे? तुम्हारा अपराध क्या था? इत्यादि ।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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