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________________ 104 शिक्षाप्रद कहानियां व्यवहारिक ज्ञान हमें मिलता है अनुभवों से। इस कहानी से हमें एक शिक्षा यह भी मिलती है कि हमें कब क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए कुछ कहने या करने का भी उचित स्थान व समय होता है। जिसका ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है। इसीलिए कहा भी जाता है कि- 'उपदेशो यथाकालम्।' ४६. प्रायश्चित्त का फल उत्तर प्रदेश में एक गाँव/कस्बा है- बाराबंकी। एक दिन वहाँ एक अजीबोगरीब घटना घटी। दिन भर कस्बे के बच्चे आँख-मिचौली खेलते रहे। उस दिन बच्चों ने जैसा खेल खेला शायद ही पहले कभी वैसा खेल खेला हो। हुआ यह कि उस दिन दो अनजान बालक भी उनके खेल में सम्मिलित हो गए थे जो बहुत अच्छा खेलते थे। कौन थे, कहाँ से आए थे, क्यों आए थे, ये सब जानने की शायद बच्चों को कोई आवश्यकता भी नहीं थी। क्योंकि उनके लिए तो मात्र इतना ही पर्याप्त था कि वे खेलते बहुत अच्छा थे। अतः गाँव के सभी बालक दिनभर उनसे खेलते-खेलते ऐसा घुल-मिल गए कि कोई कह भी नहीं सकता था कि ये बालक अनजान हैं और कहीं बाहर से आए हैं। अपितु ऐसा आभास होता था कि ये तो सदा से ही इस कस्बे के निवासी हो। उसी रात को एक घटना घटी। और वह घटना यह थी कि अचानक गाँव में कोलाहल मच गया, चोर! चोर! पकड़ो! पकड़ो! कोलाहल सुनकर सभी गाँव वाले एकत्रित हो गए। तभी भीड़ में से किसी आदमी ने एक बालक का हाथ पकड़कर कहा यही चोर तुरन्त दूसरा भी बोला- हाँ! मैंने भी इसे घर से बाहर निकलते हुए देखा है।
SR No.034003
Book TitleShikshaprad Kahaniya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKuldeepkumar
PublisherAmar Granth Publications
Publication Year2017
Total Pages224
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size477 KB
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