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________________ और वहाँ एक गाँव में गाय चराने का काम करने लगा। इस कार्य से उसने कुछ अतः उसने ग्रह बाधित पागल का.सा वेष बनाया और ही महीनों में पर्याप्त धन संचित कर लिया और अब उसने व्यापार करना आरम्भ | समस्त धन से रन खरीद लिए, तथा चिल्लाता किया । व्यापार द्वारा धन कमाने पर सोचने लगा। हुआ कि मैं रल लिये जाता हूँ। मैं विदेश में कितना ही धन रहे उससे क्या लाभ । रल लिये जाता हूँ। धन की उपयोगिता स्वदेश में है, क्योंकि वहीं पर सम्मान, आदर और प्रतिष्ठा प्राप्त होती है, अतएव अब यहाँ से अपने देश को चलना चाहिए। पर मार्ग में चोर लुटेरे बहुत है उन से) यह धन किस प्रकार सुरक्षित पहँच सकेगा। जाने लगा, चोरों ने उसका पीछा किया और पकड़ लिया तथा पूछा किरत्न तुम्हारे पास कहाँ है? इस उपाय से धनेश्वर सकुशल रत्न लेकर अपने घर पहुँच गया। अब मुझे भी इसी प्रकार पागलों जैसा व्यवहार कर अपने शील रल की रक्षा करनी है। उसने अपनी गठरी दिखाई। चौरों ने समझा कि यह पागल है, इसी कारण बक रहा है। जिसके पास रल होंगे वह कहता थोड़े ही चलेगा। रत्न छिपाकर रखने की वस्त है. कहने की नहीं। LINI राजा इन्द्र सेन ने अपने दण्डधरों को गणिकाओं के |जब मार्ग में एक पुष्करणी के निकट पहुँची तो जल पीने हेतु वहाँ गयी। मोहल्ले में भेजा। उन्होंने वहाँ जाकर रानी नर्मदा को। इस सरोवर के निकट एक गड्ढा था, उसमें वह जानबूझकर गिर गयी। राजा द्वारा बुलाये जाने की चर्चा की। नर्मदा ने स्नान, उसने अपने शरीर पर कीचड़ लपेट लिया और अंड बंड़ बकना शुरू अलंकरण किया और सुन्दर वस्त्राभूषण पहन कर राजा कर दिया। कभी वह गाली बकती,कभी रोती और कभी अपने वस्त्रों की के यहाँचलने को प्रस्तुत हो गयी। वह शिविका में आरूढ़ | प्रशंसा करती, कभी राजा की प्रशंसा करती उसका गुणगान करती और हो चल दी। कभी राजा को गाली देती, उसकी स्थिति प्रमत्त जैसी हो गयी। be S प्रेय की भभूत
SR No.033234
Book TitlePrey Ki Bhabhut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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