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कुछ काल पश्चात चारों मन्त्रियों को पता चला कि जिस मुनिसंघको वे उज्जैन में छोड़ आयेथे वह यथाशीघ्र हस्तिनापुर पधार रहा है। इस समाचार से उनके भीतर बदला लेने की इच्छा बलवती हो पड़ी उन्हें मालूम था कि महाराज पदम जिन-शासन के अनुगामी है अत: उनके रहते मुनियोंसे बदला नहीं लिया जा सकता। चारों मन्त्री कृतघ्नता-पूर्वक विचार कर महाराज पदम के पास पहंचे और बोले...
महाराज! हम आज अपना इनाम मांगने आये है।
क्या चाहिये?
महाराज,हमें सात दिन के लिए अपना पदभार और अधिकार महाराज पदम वचनबदथे अतः सोपदीजिये तथा आप शांतिपूर्वक सात दिनों तक रजवास में रहिये। उन्होंने ऐसा ही किया।
मन्त्रियों ने अधिकार लेने के बाद योजनानुसार एक यज्ञशाला बनवाई। फिर मुनियों के उपवन में प्रवेशकरते ही तीवगन्धयुम्त धुम्रकिया। मुनियों पर सड़ी गली वस्तुएँवमांस के टुकड़े उघाले। संघ-प्रमुख मुनि अकम्पनाचार्य उपसर्ग की तथा-कथा समझ गये, सो उसके निवारण-पर्यन्त सभी मुनि आगमपरम्परा के अनुसार अन्न-जल का त्यागकर ध्यान लीन हो गये।
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