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________________ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में काकन्दी महामनोहर नगरी में इश्वाकुवंशीय राजा सुग्रीव प्राणनाथ से स्वप्नों का फल सुनकर रानी को बहुत प्रसन्नता हुई। गर्भ का का राज्य था। उनकी रानी का नाम जयरामा था। देवों ने महाराज सुग्रीव के समय पूरा होने पर मार्गशीर्ष शुक्ला प्रतिपदा के दिन उत्तम पुत्र का जन्म हुआ। महल पर रत्नों की वर्षा शुरू कर दी। अनेक देव कुमारियां आकर महारानी देवों ने क्षीर सागर के जल से बालका का जन्माभिषेक किया एवं उनका जयरामा की सेवा करने लगी। रानी जयरामा ने सोलह स्वप्न देखे। प्रात: काल | पुष्पदंत नाम रखा। महाराज सुग्रीव ने हर्षोल्लास पूर्वक पत्रोत्सव मनाया। पतिदेव से स्वप्नों का हाल पूछा- आज तुम्हारे गर्भ में तीर्थकर पुत्र ने बालक पुष्पदंत बाल इन्दु की तरह क्रम से बढ़ने लगे। कुमार अवस्था के बाद उन्हें राज्य प्राप्त हुआ। राज्य की बागडोर हाथ में आते ही उनका साम्राज्य अवतार लिया है। वह महापुण्यशाली पुरूष है। देखो ! उसके गर्भ में आने | प्रतिदिन बढ़ने लगा। कुलीन कन्याओं के साथ इनका विवाह हुआ। राज्य के छह माह पहले से प्रतिदिन करोड़ों रत्न बरस रहे हैं एवं देव कुमारियां करते हुए इन्हें बहत वर्ष व्यतीत हो गये। तुम्हारी सेवा कर रही हैं। 200 000000हा - एक दिन उल्कापात देखने से उनका हृदय विरक्त हो गया। वे सोचने लगे- निदान वे समति नामक पत्र को राज्य का भार सौंप कर देव निर्मित इस संसार में कोई भी पदार्थ स्थिर नही हैं। सूर्योदय के समय जिस वस्तु को 'सूर्यप्रभा' पालकी द्वारा पुष्पक वन में गये। जिन दीक्षा ले ली। आत्मज्ञान में देखता हूँ, उसे सूर्यास्त के समय नहीं पाता हूँ। जिस तरह इन्धन से कभी लीन हो गये। वे ध्यान पूर्ण होने पर कभी प्रतिदिन कभी दो तीन चार या अग्नि सन्तुष्ट नहीं होती, उसी तरह पंचेन्द्रिय के विषयों से मानव अभिलाषाएं उससे अधिक दिनों के अन्तराल से आहार लेने के लिए जाते थे। इस तरह कभी सन्तष्ट नहीं होती। खेद है कि मैंने अपनी विशाल आय साधारण मनष्यों चार वर्ष व्यतीत हो गये। एक दिन नाग वक्ष के नीचे ध्यान लगाकर बैठे थे।। का तरह यो ही बीता दी। दर्लभ मनुष्य पर्याय पाकर मैंने उसका अभी तक वहा कातक शुक्ला द्वीतीया के दिन मूल नक्षत्र में केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। सदुपयोग नहीं किया। आज मेरे अंतरंग नेत्र खुल गये हैं। जिसमें मुझे कल्याण देवों ने आकर उनका ज्ञान कल्याणक उत्सव मनाया। समवशरण की रचना की। देश विदेश में विहार कर सद्धर्भ का प्रचार किया। आय के अन्त में का मार्ग स्पष्ट दीख रहा है। समस्त परिवार व राजकार्य से मुक्त हो निर्जन वन सम्मेद शिखर पर योगनिरोध किया। शुक्ल ध्यान के द्वारा अधातिया कों| में बैठकर आत्मध्यान करूं। का नाश कर भादों शुक्ला अष्टमी के दिन मूल नक्षत्र में मोक्ष प्राप्त किया। देवों | ने निर्वाण कल्याणक की पूजा की। भगवान पुष्पदन्त का ही दूसरा नाम सुविधिनाथ था। इनके मगर का चिह्न था। जैन चित्रकथा 29
SR No.033222
Book TitleChoubis Tirthankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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