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________________ जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में श्रावस्ती नगरी में दृढराज्य राजा थे। वे अत्यन्त प्रतापी, भगवान सम्भवनाथ द्वितीया चन्द्रमा की तरह धीरे-धीरे बढने लगे। धर्मात्मा, सौम्य एवं साधु स्वभाव के व्यक्ति थे। अद्वितीय सुन्दरी, सुषेणा उनकी उनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान पीला था। द्रढराज्य ने योग्य महारानी थी। राजा दढराज्य के गह पर प्रतिदिन असंख्य रत्नों की वर्षा होने लगी- | कुलीन कन्याओं के साथ इनका विवाह कर दिया था। समय की प्रगति अनेक शुभ शकुन होने लगे थे। जिससे राज दम्पत्ती आनन्द से फूले न समाते थे। को देखते हुए आपने राजनीति में बहुत परिवर्तन किया था। एक दिन रात्रि के पिछले पहर महारानी सुषेणा ने सोते समय ऐरावत हाथी आदि सोलह स्वप्न देखे, मुख में प्रवेश करते हुए गन्ध सिन्दुरमत्त हाथी को देखा। | प्रात:काल ही उसने पतिदेव से स्वप्नों का फल पूछा। आज तुम्हारे गर्म में तीर्थकर पुत्र ने अवतार लिया है। पृथ्वीतल पर तीर्थकर । के जैसा पुण्य किसी का नही होता। देखो न वह छह महीने पहले से ही असंख्य राशि रत्न बरस रहे हैं। प्रत्येक वस्तु कितनी मनोहर हो गयी है। ROID 4TA कार्तिक शुक्ला पूर्णमासी के दिन मृगशिर नक्षत्र में उनके पुत्र रत्न उत्पन्न हुआ। देवों ने पहिले तीर्थकरों की तरह मेरुपर्वत पर इनका भी जन्माभिषेक किया, उनका नाम भगवान सम्भवनाथ रखा गया। एक दिन महल की छत पर प्रकृति की शोभा देख रहे थे। उनकी दृष्टि एक स्वेता भगवान सम्भवनात्रथ निजपुत्र को राज्य देकर वन जाने के लिए बादल पर पड़ी। वायु के वेग से क्षण भर में बादल विलीन हो गया। कहीं का कहीं | तैयार हो गये। देवगणों ने आकर उनके तप कल्याणक का उत्सव चला गया। उसी समय उनके चरित्र मोहनीय के बंधन ढीले हो गये, वे सोचने लगे- मनाया, तदन्तर सिद्धार्थ नाम की पालकी पर सवार होकर सहेतुक संसार की सभी वस्तुएं इस बादल की तरह क्षण भंगुर है। एक दिन मेरा यह वन में गये। वहां मार्गशीष शुक्ला पूर्णिमा के दिन शाल वृक्ष के दिव्य शरीर भी नष्ट हो जायेगा। मैं जिन स्यीपत्रों के मोह में उलझा हआ आत्म। नीचे जिन दीक्षा ले ली।। हित की ओर प्रवृत नही हो रहा हूँ। वे एक भी मेरे साथ नही जायेंगे। JOOD 1000 OULIC जब तक छद्मस्थ रहे तब तक मौन धारण कर तपस्या करते रहे, इस तरह चौदह वर्ष तपस्या करने के बाद उन्हें कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी दिन मृगशिर नक्षत्र के उदय काल में संध्या के समय केवल ज्ञान प्राप्त हो गया। उन्होंने समस्त आर्य क्षेत्रों में विहार किया। चौबीस तीर्थकर भाग-2
SR No.033222
Book TitleChoubis Tirthankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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