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________________ इधर जब क्रोध का वेग शान्त हुआ। तब राजा भरत भी कुमार बाहुबली के विरह में अत्यधीक दुखी हुए। किन्तु उपाय ही क्या था? समस्त पुरवासी व सेना के साथ लौटकर उन्होंने अयोध्या में प्रवेश किया। वहां समस्त राजाओं ने मिलकर राजा भरत का राज्याभिषेक किया। उन्हें राजाधिराज सम्राट के रूप में स्वीकार किया। अब वे निष्कंटक होकर समस्त पृथ्वी का शासन करने लगे। सम्राट भरत ने राज्य रक्षा के लिए समस्त राजाओं को राज्यधर्म क्षत्रिय धर्म का उपदेश दिया था। जिसके अनुसार प्रवृति करने से राजा एवं प्रजा सभी सुखी रहते थे एवं राजा की भलाई में प्राण देने के लिए तैयार रहती थीं। इस तरह सम्राट भरत अपनी स्त्री रत्न सुभद्रा के साथ विविधप्रकार का ऐश्वर्य भोगते हुए सुख से समय बिताते थे। एक दिन उन्होंने विचारामैंने जो इतनी विपुल सम्पत्ति इकट्ठी की है, उसका क्या होगा? बिना दान किये। इसकी शोभा नहीं है। पर दान दिया भी किसे जावे ? मुनिराज तो संसार से सर्वथा निस्प्रह है, इसलिए वे न तो धन धान्य आदि का दान ले सकते हैं, न उन्हें देने की आवश्यकता ही है। वे केवल भोजन की इच्छा रखते हैं। सो गृहस्थ उनकी इच्छापूर्ण कर देते हैं। हां गृहस्थ धन धान्य आदि का दान ले सकते हैं, पर अब्रती गृहस्थ को दान देने से लाभ ही क्या होगा? इसलिए अच्छा यही होगा कि प्रजा में से कुछ दान पात्रों का चयन किया जावे। जो योग्य हों उन्हें दान देकर इस विशाल सम्पत्ति को सफल बनाया जावे। वे लोग दान लेकर आजीविका की चिन्ता से विर्निमुक्त धर्म का प्रचार करेंगे एवं पठन पाठन की प्रवृति करेंगें। | यह सोच कर किसी दिन प्रजा को राज मन्दिर में आने के लिए आमन्त्रित किया राज मन्दिर के आगे मार्ग में हरी-हरी दूब लगवा दी, जब व्रतधारी लोगों ने मंदिर के द्वार पर पहुंच कर वहां हरी दूब देखी, तब वे व्रत रक्षा के लिए आगे न बढ़ कर वहीं रूक गये। पर जो अव्रती थे वे पैरों तले दूब को कुचलते हुए भीतर पहुंच गये। 10 DODE चौबीस तीर्थंकर भाग-2
SR No.033222
Book TitleChoubis Tirthankar Part 02
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size9 MB
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