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________________ बेटा अपना वंश कलाकारों का वेश है, मूर्तिकारों का वंश है। मूर्ति निर्माण के बाद निर्माण कराने वाला जोदे उसे प्रभू का प्रसाद समझकर स्वीकार करना चाहिए। जैन चित्रकथा (स्वामी। क्षमा करें। मूर्ति अभी पूरी तरह बनी नहीं है। सुन्दरता निखारने के लिए मुझे बहुत श्रम करना पड़ेगा। जितना भी पाषाण मूर्ति से निकाल कर लाओगे उतने ही वजन के बराबर तौल कर हीरे-मोती दूंगा। क्षमा करेस्वामी मैने जोपारिश्रमिक लिया है वह भी लौटा रहा है। कलात्मक देव प्रतिमा का निर्माण मूल्य के बदले में नहीं हो सकता। मैंने जब से मूल्य नलेने का निश्चय किया । है मूर्ति में अनेकदोष दिखने लगे है। मूर्तिकार मैं तुम्हारी भावना का सम्मान करता हूँ। तुम्हारी साधना सफल हो। OODOO orors ORG RSSC
SR No.033219
Book TitleAgnat Pratima Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRekha Jain
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year2004
Total Pages24
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size6 MB
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