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________________ कमठ तापसी के आश्रम में रहने लगा। एक दिन वह दोनों हाथों पर एकशिला उठाये तपस्या कर रहा था कि... भैया! मुझे क्षमा कर दोना। मैंने तुझे क्षमा करदूं? दुष्ट कहींका,तेरे ही कारण तो मुझे घोर अपमान) राजा की बहुत समझाया परन्तु सहना पड़ा अबतूकहा जायेगा मुझसे बचकर...... वह माने ही नहीं। मैं तुम्हें देखने को बहुत बेचैन था बहुत दंढा। अबमिले हो । मुझे क्षमा करो... भैया क्षमा करो.... और कमठ ने वहशिला अपने छोटे भाई के मस्तक पर पटक दी। खून की धाराबहने लगी और मरुभूति वही मर गया....... ... ... ... मरुभूति मर करसल्लकी नाम के बन में और उधर राजा अरविन्द गढ की छत पर खड़े थे। वज्रघोष नाम का हाथीहुआ औरकमठ तापसी मरकर उसीबन में सर्प बना... ... ... अहा! हा! कितना सुन्दर महल हैयह रक्टोंन मैं भी ALA-9A- इसी प्रकारकां महल बनवाऊं), चलूकागज -Anml लेकर चित्र बना HEA प (SS
SR No.033212
Book TitleParshvanath
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherUnknown
Publication Year2000
Total Pages28
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size38 MB
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