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________________ कौण्डेश से कुन्दकुन्द नहीं माँ । में अपने जन्म के लिए) लज्जित हूँ। अब अनन्त काल, तक जन्म न लूंगा, किसी को कष्ट न दूंगा। इतने वर्ष संयम विनाव्यर्थ किये, परन्तु अब न करूंगा। तुम जानते हो पदम कि मैं तुम्हें कितना प्यार.) (करती ई । नुम ही मेरी एकमात्र संतान हमें कैसे अपनी ममता को दबोच लूं। arma नहीं. नहीं.. पद्म ऐसा) नहीं होने दूंगी। तुम्ही अनन्त काल तक मेरे। पुत्र कहलाओगे। (मैं जानता हूँ माँ । इसी लिए नुमसे दीक्षा की आज्ञा चाहता । तुम अपनी ममता को अमर कर दो अन्यथा इसी जन्म तक तुम्हारा पुत्र कहलाऊँगा तुम अपनी ममता को मेरी राह में न लाओमां तुम्ही ने मुझे शिक्षा दी सहसंयम-पूर्वक मुझे आज्ञा दो। धिक्कार है ! मेरा मोट; जो सन्मार्ग पर चलने वाले पुत्र के सुख में ही डाधा बन रहा है। 00000 पर ऐसा संभव कैसे १२ पदम का कथन असत्यर० तो नहीं। और फिर माँ) का कर्तव्य तो पुत्र को कूमार्गसे रोकना है। नियोग की आशा सेठी में सार्थिनी बना रही ई.....
SR No.033209
Book TitleKaudesh se Kundkund
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogesh Jain
PublisherMukti Comics
Publication Year2000
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size33 MB
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