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________________ 16 मुक्ति कामिक्स हाँ माँ! मैं ही क्या, आज तो ग्रानगर ही पागल होगा क्यों (कि आज के सूर्य का उदय ही ऐसा है जिससे अज्ञान का (नाश होगा। पाप गलेगे , ज्ञान के प्रकाश से सभीगल (पहेलियाँ क्यों झुकाते हो पदमर (तुमतो मुझही से पांडित्य) करने लगे सीधी बात बताओ।) होंगे बात यह है माँ कि आचार्यवर जिनचन्द्र के) रूप में सूर्योदय हुआ है,वे पास के जंगल में) विराजमान है। सारा नगर उनके दरनि करने) जारहा है माँ। और में भी ।। (सुनो पदम! मैं भी चल रही हूँ। पदम माँ की प्रतीक्षा किए बिना ही चला गया। इस बात से मां सोचती है कि मुनिराज के ०००० प्रति इतनी श्रद्धा और निष्ठा कि पद्म मेर। पुत्र डेकर तनिक परीक्षा न कर सका। (सेठानी की सोच का बादल घना होने लगा और उनके मस्तिष्क रूपी आकाश घर रहा गया । उनको अचानक पदम के मुनियनने (फा खयाल भाया कि --- ने स्वयं बुदबुदाने लगी- नहीं नहीं! मैं ऐसा कभी नहीं होने (दंगी। मेरा ने। एक ही पुत्र है। मैं उसे मुनि (नहीं बनने दूंगी। मेरा पुत्र तो भावी नगर(सेठ है, और ज्ञान है मेरा पद्म ।
SR No.033209
Book TitleKaudesh se Kundkund
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogesh Jain
PublisherMukti Comics
Publication Year2000
Total Pages32
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size33 MB
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