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________________ सम्वत् 1965 में कहान कुमार ने धार्मिक 4 अक्सर पुस्तक 'अध्यात्म कल्पद्रुम'का - धार्मिक ग्रन्थों के अध्ययन में अध्ययन किया, यहां तक कि पालेज की उस दुकान पर भी उनके हाथ में पुस्तक होती थी. ( कितनी अच्ही खोये रहते थे. पुस्तक है. में इतनी देरसे सामान तौलनेकीकह रहाहूं, आप सुनते ही नहीं, Na Vबता तो चुका है. आप इसी ) तरह अध्ययन में खोए रहे तो दुकान चौपट होजायेगी. KAR सामान...ओह आपको) स्या क्या चाहिये? अरे पुईक, वह ग्राहक ठीक कह रहा) वह गुजराती गीत ?...सुनोहै.हमेशा पुस्तकों में न रवोये रहाकरो 'जगतड़ा कहे हे कि भगतड़ा चेला आइये मामाजी पण घेला न मानसोरे, प्रभुनेत्या पहेला हे आपसे गीत सनना जगतहाकहे थे कि भगतड़ा कालादे. पण कालो न मानसोरे,प्रसुनेतेव्हाला है कहानकुमारकाप्यारकानाम
SR No.033208
Book TitleKahan Katha Mahan Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhil Bansal
PublisherBahubali Prakashan
Publication Year2000
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size32 MB
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