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________________ विवाह के बाद जीवधर कुमार अपने मित्रों के साथ पितागंधोत्कट के पास आकर रहने लगे । जैन चित्र कथा हे पुत्र तुम काष्ठांगार के चंगुल से बच निकले और सुरक्षित हो, यह देखकर मुझे परम आनंद हो रहा है। 12 107 किंतु अब मैं शांत न बैठूंगा में राज्य वापल लेने के लिए सेना आदि की व्यवस्था करने जा रहा हूं। यह बात गुप्त रहे । मैं हर तरह से तुम्हारी सहायता करुगा। राजपुरी नगरी से चलकर जीवंधर कुमार अपने मामा राजा गोविन्दराज के राज्य विदेह नगर में पहुंचे। मैं अपने पिता का खोया हुआ राज्य वापस लेना चाहता हूं और काष्ठांगार को उसके किए की सजा दूंगा, इस कार्य में मैं आपकी सहायता चाहता हूं। 22 आओ भांजे, जीवंधर। तुम्हारा स्वागत है ! Orac उधर गुप्तचरों ने काष्ठागार को सूचना दी कि राजा गोविन्दराज को विश्वास हो गया है कि महाराज सत्यंधर का वध आपने किया है। इसका बदला लेने के लिए वह आप पर चढ़ाई करने वाले हैं। इस समय मुझे कूटनीति से काम लेना होगा। सबसे पहले पत्र लिखकर गोविन्दराज़ के सामने स्थिति स्पष्ट कर देनी चाहिए ।
SR No.033207
Book TitleJeevandhar Swami
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Shastri
PublisherAcharya Dharmshrut Granthmala
Publication Year2000
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size46 MB
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