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________________ अपराध क्षण भर का इधर नन्दश्री श्रेणिक के आगमन की प्रतीक्षा करने लगी... दरवाजे पर आने के समय गिलास भर पानी लाया गया... कहाँ तो इतना कीचड़ और सुन सखी ! कुमार के आने का समय हो गया ! दरवाजे पर मैंने जैसा करने को कहा, वैसा कर दिया। अब देखती जब श्रेणिक 'नन्दश्री' के द्वार पर आया... गजब है अभी तो बरसात भी नहीं है, शहर में कहीं भी कीचड़ नहीं था, यहाँ ही क्यों है ? और ईटें भी रखी हैं, इन पर पैर रखूँगा तो गिरूँगा... हँसी होगी.... कहाँ इतना-सा पानी ? इससे कीचड़ धुल सकेगा ? हूँ वह कितना चतुर है.... उधर श्रेणिक दासी के दिखाये संकेत को खोजने लगा... अरे ! वही है तालवृक्ष... उसी का पत्ता दासी ने कान में लगाया था । वही घर है। फिर तो श्रेणिक ने कीचड़ में ही चलने का निर्णय लिया। 15 HO आश्चर्य ! वाह ! ऐसी चतुराई और कहाँ एक क्षण विचारकर श्रेणिक ने तालवृक्ष के पत्तों व लकड़ी से खुरचकर कीचड़ साफ की और... अब इस थोड़े से जल से पैर धोलूँ ।
SR No.033205
Book TitleApradh Kshan Bhar Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogesh Jain
PublisherMukti Comics
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size30 MB
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