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________________ अपराध क्षण भर का आराम करने के बाद वे फिर चलने लगे, चलते-चलते वे एक शहर पहुंचे। "मामाश्री' वह स्त्री बँधी है या खुली, तथा यह शहर उजड़ा हुआ है या बसा हुआ? भानजे! तेरे उत्तर तो नहीं मालूम, पर इतना अवश्य पता है कि तेरी बुद्धि उजड़ चुकी है, मूर्खराज कहीं का... श्रेणिक इस प्रकार के अटपटे प्रश्न करते हुए आगे बढ़ रहा था कि तभी... परन्तु श्रेणिक को मूर्खाधिराज समझकर इन्द्रदत्त आगे बढ़े जा रहा था कि तभी उसे अपना गाँव दिखा। 'मामाश्री" यह मनुष्य आज मरा है कि जन्म से मरा है ? मैं तो चला गाँव, पर तूं यहीं ठहर,कहीं न जाना, समझे ! किसी को भेजूंगा.... श्रेणिक वहीं बैठ गया। घर पहुँचकर सेठ ने रास्ते का सारा समाचार कह सुनाया। मुझे तो श्रेणिक बहुत मूर्ख लगा बेटी। अरे ! वह मूर्ख नहीं, बहुत 1 बड़ा विद्वान है विद्वान। वह कैसे?
SR No.033205
Book TitleApradh Kshan Bhar Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogesh Jain
PublisherMukti Comics
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size30 MB
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