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________________ अपराध क्षण भर का श्रेणिक की माँ व प्रजा ने जब यह तब श्रेणिक ने काफी सोचासमझा; और माँ को बिना बताये ही चल दिया। Jहा देव ! ऐसा कौन-सा अपराध किया, जो पुत्र वियोग सहना पड़ रहा है। इधर भूखे-प्यासे जंगल में भटकते श्रेणिक को इन्द्रदत्त नामक सेठ मिला तो.. और वे नन्दिग्राम के सरपंच के यहाँ पहुँचे चलो मामाश्री! किसी पास के गाँव में चलकर भोजन तलाश करें। चलो भागो यहाँ से मैं तो तुम्हें पानी भी न दूँ, भोजन का तो प्रश्न ही नहीं... पता नहीं कहाँ-कहाँ से... इस तरह अपमानित भूखा-प्यासा श्रेणिक बौद्ध साधुओं के मठ में जा पहुंचा। भविष्य में यह मनुष्य निश्चित रूप से राजा होगा। इससे उत्तम व्यवहार करना अच्छा रहेगा। यह आश्रम आपका ही है! यहाँ कुछ दिन रहकर इसे शोभित करें। आइये-आइये...नरश्रेष्ठ! पहले भोजनादि से प्रसन्न होइयेगा।
SR No.033205
Book TitleApradh Kshan Bhar Ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYogesh Jain
PublisherMukti Comics
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationBook_Comics, Moral Stories, & Children Comics
File Size30 MB
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