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________________ नहीं चलने देते बल्कि युग को अपने साथ लेकर चलते हैं / ऐसे ही महापुरुष थे महान कर्मयोगी ब्रह्मचारी शीतलप्रसाद जी / वे दिगम्बर जैन समाज के गौरव थे / . ब्रहमचारी जी की विशेषता थी कि वे समाज सेवा व जैनधर्म के प्रचारार्थ हर समय तत्पर रहते थे। उन्हें आध्यात्मिक विषयों के प्रति गहरी रुचि थी / विधवा-विवाह का समर्थन करके उन्होंने अपनी निर्भीकता का परिचय दिया / अनेक महत्वपूर्ण व सामयिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त किये / स्वतंत्रता का व्यवहारिक दृष्टि से लक्षण बताते हुए उन्होंने लिखा था कि 'जिस देश के निवासियों को अपनी हर प्रकार की उन्नति करने में, साम्प्रदायिक ज्ञान सम्पन्न होने में, व्यापार उद्योग वृद्धि करने में, दरिद्रता के निवारण में, स्वप्रतिष्ठा को अन्य देशों के सामने स्थापित रखने में, सर्वनागरिक हकों के भोग करने में, अपनी राज्य पद्धति को समयानुसार उन्नतिकारक नियमों के साथ परिवर्तन करने में, कोई विध्न-वाधा नहीं है, वहां स्वतंत्रता का राज्य है / आध्यात्मिक दृष्टि से जिस आत्मा में अपने आत्मिक गुणों के विकास करने में, उनका सच्चा स्वाद लेने में उनकी स्वाभाविक अवस्था के विकास करने में कोई पर वस्तु के द्वारा बिघ्न-बाधा नहीं है, बहां स्वतंत्रता का सौन्दर्य है / स्वतन्त्रता आभूषण है, परतत्रता अंधकार है / स्वतंत्रता मोक्षधाम है / परतंत्रता ससार है / यह जीव राग-द्वष मोह के वशीभत होकर आप ही परतंत्र हो रहा है / परतंत्र होकर रात-दिन चिंतातुर रहता है / तृष्णा ही दाह में जलता है / बार बार जन्म-मरण के कष्ट सहता है / यदि वह अपने बल को सम्हाले, अपने स्वभाव को देखे अपने गुणों की श्रद्धा करे, अपने भीतर छिपे हुए ईश्वरत्व को, सिद्धत्व को, परमात्मतत्व को पहचाने कि मैं आत्मा हूं, मैं निराला हूं अपनी अनन्त ज्ञान-दर्शन सुख वीर्यादि संपत्ति का स्वयं भोगता हूं. तो इस प्रकार सोचने और अनुभव करने से स्वतंत्रता का भाव झलक जाता है / ब्रहमचारी जी ने कहा है कि 'अहिंसा वीरों का धर्म है, धैर्यवानों का धर्म है, यही जगत को रक्षा करने वाली है / भारत की गुलामी
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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