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________________ को तैयार करते समय जब उन्हें बंगाल, बिहार, उड़ीसा में जो "सराक" नामक जैनजाति है, उसका पता चला तो उस जातिवालों के निवास स्थानों में स्वयं पहुंचकर धर्मप्रचार किया। सन् 1924 के 15 मार्च से 4 अप्रैल तक उड़ीसा के सराकों के गांव-गांव में बड़ी कठिनाई से पहुंचकर धर्मप्रचार किया था। उस धर्मप्रचार की इस धर्मयात्रा का विवरण कटक के बाबा चन्दनलाल कन्हैयालाल ने 24 पृष्ठों की पुस्तिका में प्रकाशित कराया था। पं कैलाशचन्द्र शास्त्री ___समाज को गति प्रदान करने वाले ही युगपुरुष कहे जाते हैंऐसे युगपुरुषों में से ब्र० शीतलप्रसाद जी भी थे। हमने उनका वह समय देखा है जब उनके नाम की तूती बोलती थी / उस समय समाज में त्यागी अत्यन्त विरले थे। एक ऐलक पन्नालाल जी का नाम सुनने में आता था, मुनि तो केवल शास्त्रों में थे। हमने तो अपने बचपन से तीन को ही सुना, जाना और देखा-एक ब्र० शीतलप्रसादजी, दूसरे बाबा भागीरथ जी वर्णी और तीसरे श्री पं० गणशप्रसाद वर्णी / किन्तु इन तीनों में भी उस समय समाज विश्रत थे ब्र० शीतलप्रसाद जी। समाज में उत्तर से दक्षिण तक शायद ही कोई समारोह हो जिसमें वह न पहुँचते हों। चातुर्मास में एक स्थान पर रहने के पश्चात आठ माह वह भ्रमण करते थे। मोरैना में जब हम पढ़ते थे तो महाविद्यालय के महोत्सव में समस्त अथितियों का स्वागत करते हुए पं० देवकीनंदन जी ने कहा था कि जैन समाज के वर्तमान "विद्याधर" भी यहीं उपस्थित हैं / सचमुच में ब्र० जी विद्याधर थे। उनका पैर रेल में रहता था। रेल में बैठते ही उनका जूट का बोरा खुल जाता था और वह अपने लिखने-पढ़ने में लगजाते थे। वह खाली बैठना नहीं जानते थे। न उन्हें गप्पबाजी में रस था / व्यर्थ की बातचीत नहीं करते थे। उन्हें एक ही धुन था - सेवा की। वह भी थी दि. जैन समाज और दि० जैन धर्म की। वह कट्टर दिगम्बर जैन थे। न मालम कितने घरानों और व्यक्तियों को ब्रह्मचारी जी ने अपने सदुपदेश से जैन धर्म की ओर आकृष्ट किया / जैनसमाज के प्रचार-प्रसार और प्रगति का ऐसा कोई काम नहीं था जिसमें उनका योगदान न रहा हो। इसके लिए वे किसी आमंत्रण की अपेक्षा नहीं करते थे - "मान न मान मैं तेरा मेहमान" यही उनका आदर्श था / वह समयसार के रसिया थे और अपने आचार
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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