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________________ __ भगवत्कुन्दकुन्दाचार्य कृत ग्रन्थराव समयसार पर अमतचन्द्राचार्य द्वारा रचित संस्कृत कलशों की पांडे राजमल्ल जी की टीका के आधार से स्वरचित भाषा के टीका के अन्त में 25 दोहों में निबद्ध अपनी प्रशस्ति में ब्रह्मचारी जी ने स्वयं अपने जन्मस्थान, पितृनाम, वंश जन्मतिथि, व्रतग्रहण तिथि, प्रस्तुत ग्रन्थ (टीका) का रचना स्थान, रचनातिथि, रचना में प्रेरक अथवा निमित्त साधर्मी सज्जनों का संक्षिप्त परिचय आदि ज्ञातव्य प्रदान कर दिये हैं। सन् 1926 ई० का चातास उन्होंने आन्ध्रप्रदेशस्थ धाराशिव नगर में किया था। उस नगर के निकट ही पर्वत पर वह अत्यन्त प्राचीन जैन गुफा-मन्दिर है जिसमें भगवान पार्श्वनाथ के तीर्थ में उत्पन्न प्रतापी जैन नरेश महाराजा करकंड ने उवत तेईसवें तीर्थंकर को सातिशय विशाल प्रतिमा प्रतिष्ठापित की थी। जैसे ही जैन पुरातत्व के प्रेमी एवं सतत् खोजी ब्रह्मचारी जी का ध्यान धाराशिव की जैन गुफाओं को पुरातात्विक निधि ने स्वभावत. आकृष्ट किया। उन्होंने उसका निरीक्षण परीक्षण किया और अपने लेखों आदि में परिचय दिया। उक्त तीर्थस्थल की पवित्रता भगवान की सातिशय मनोज्ञ प्राचीन प्रतिमा के दर्शन पूजन, स्वअभिरुचि तथाउक्त नगर के निवासी अध्यात्मरसिक साधर्मी सेठ नेमचन्द्र प्रभाति श्रावक-श्राविकाओं के आग्रह का निमित्त पाकर ब्रह्मचारी जी ने उक्त वर्षावास में इस टीका का प्रणयन किया और आश्विन शुक्ल चतुर्दशी, बृहस्पतिवार, बिसं० 1986 (सन् 1926) के दिन वहीं उसे पूण किया था। ब्रह्मचारी जी की ऐसी प्रशस्तियां या आत्मपरिचय उनकी कुछ अन्य कृतियों में भी प्राप्त हो सकती हैं।
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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