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________________ विदेशों मे धर्म प्रचार की ललक 1944 में प्रकाशित 'वीर' के 'शीतल-विशेषांक' में हमने उन्हें " अपने युग का सबसे बड़ा मिशनरी" कहा था / वस्तुतः देशविदेशों में जैन धर्म के प्रचार की जैसी उत्कट लगन एवं कामना ब्रह्मचारी जी में थी, वैसी किसी भी अन्य त्यागी या गृहस्थ समाजसेवी में दृष्टिगोचर नहीं हुई / भारतवर्ष में तो सर्वत्र उन्होंने भ्रमण करके धर्म की प्रभावना की ही, बर्मा और श्रीलंका में रहकर बौद्ध धर्म एवं बौद्ध भिक्षओं का भी परिचय प्राप्त किया / 1633 ई० में "ए कम्पेरेटिव स्टडी आफ जैनिज्म एंड बुद्धिज्म' शीर्षक 304 पष्ठ की अंगेजी पुस्तक प्रकाशित कराई, जिसका हिन्दी अनुवाद "जैन वौद्ध तत्वज्ञान" के नाम से 1934 में प्रकाशित कराया / बौद्ध-भिक्ष नारदथेर एवं स्वामी आनन्द मैंत्रेय से पत्र व्यवहार किया / टोकियो (जापान) की इम्पीरियल युनिवर्सिटी की संस्कृत सेमिनरी को तथा अन्य बौद्ध विद्वानों को 'सेक्रेड बुक्स आफ जैन्स' ग्रन्थमाला के प्रकाशन भिजवाये / उनके एक पत्र के उत्तर में केलनिया (श्रीलंका ) के विद्यालंकार कालेज के प्रधानाचार्य श्री धर्मानंद ने 21-3-1932 को लिखा था- " यहां विद्यालय में स्थान की कुछ कमी हैं, लेकिन फिर भी ठहरने के लिए मैं आपको एक कमरा दे सगा। आप विद्यालय में आकर अपना अध्ययन चला सकते हैं / यहां इस समय त्रिपिटकाचार्य श्री राहुल सांकृत्यायन ठहरे हुए हैं / आप वौद्ध दर्शन के अतिरिक्त दूसरे भारतीय दर्शनों के भी पंडित हैं / आने की सूचना मिलने पर मैं यहां से म्युनिसिपल पासपोर्ट भिजवा दूंगा / मई मास के अन्त तक आप यहां पहुंच जायें तो आनन्द कौसल्मायन की भी आपसे भेंट हो सकेगी और ब्रह्मचारी जी श्रीलंका पहुंच गये तथा वहां की राजधानी कोलम्बो में 1632 के जून की 1,8 व 13 तारीखों को अंग्रेजी में तीन व्याख्यान क्रमशः "फिलासफी आफ जैनिज्म'", अहिंसा दी सेन्ट्रल टेनेट आफ जैनिज्म' तथा "महावीर" दिये / वहां से वर्मी आये जहां रंगून की थियोसोफिकल सोसाइटी में 7 मई 1933 को 'कर्म फिलासफी' पर अंग्रेजी में व्याख्यान दिया। ओसाका (जापान) के स्कूल आफ फारेन लेग्वेजेज से 16-6-19-32 के पत्र में प्रो० अतरसेन जैन ने ब्रह्मचारी जी को लिखा था ( 27 )
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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