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________________ कारण बैरिस्टर जगमन्दर लाल जैनी द्वारा "जैन धर्म का अथक परिश्रमी सेवक" शब्दों से प्रशंसित हुए / तब से यहो जीवन कामू लमंत्र वन गया। 1905 - वाराणसी में वृहद् जैन सम्मेलन, जिसमें स्याद्वाद महाविद्यालय की स्थापना हई। इस समारोह में इनकी विशेष सक्रिय भमिका रही। वहीं बंबई के दानवीर सेठ माणकचन्द्र जी जे० पी० के सम्पर्क में आए और संबंध बढ़ते गए। सेठ जी के आग्रह पर 16 अगस्त को रेलवे नौकरी से त्यागपत्र देकर उनके पास बंबई चले गए और धर्म एवं समाज सेवा के कार्य में एकनिष्ठ होकर जट गए। अनेक स्थानों की यात्रा भी की। सेठ जी और उनकी सुपुत्री मगनबेन इनसे स्नेही आत्मीयवत व्यवहार करते थे। 1906 - "जैनमित्र" के सम्पादक मनोनीत हुए और लगभग बीस वर्ष पर्यन्त बने रहे। उस पत्र को अभूतपूर्व महत्व और स्थायित्व प्रदान किया। इसी वर्ष बड़े भाई . ला० अन्तूमल का देहान्त हुआ। 1910- 13 सितम्बर के दिन शोलापर में ऐल्लक पन्नालाल जी के समक्ष ब्रह्मचर्य प्रतिभा धारण की और तभी से ब्रह्मचारी शीतल प्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हुए - स्वयं वह अपने हस्ता. क्षर "ब्रह्मचारी शीतल" के रूप में करते थे। दीक्षा के अवसर पर उनके ओजस्वी भाषण से प्रेरित होकर उपस्थित जनता ने 30.000 रू. दानार्थ एकत्र कर लिए। 1911 - उड़ीसा यात्रा, पुरातात्विक खोज, विभिन्न प्रान्तों के जैन स्मा रकों को प्रकाश में लाने का कार्यारम्भ / मुलतान (सिंध) में चातुर्मास / श्वेताम्बर साहित्य का विशेषाध्ययन / “तत्वमाला" और "गृहस्थ धर्म" पुस्तकों का लेखन-प्रकाशन / जैनतत्व प्रकाशिनी सभा इटावा के मानद सदस्य / 1912 - जयपुर चातुर्मास, कुन्दकुन्दाचार्य के नियमसारादि ग्रंथों का गहन अध्ययन. सामायिक का प्रचार, "अनुभवानंद" पुस्तक का प्रकाशन / कुलहापहाड़ की यात्रा और उस तीर्थ के उद्धार का प्रयत्न / (22)
SR No.032880
Book TitleSamajonnayak Krantikari Yugpurush Bramhachari Shitalprasad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJyotiprasad Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Parishad
Publication Year1985
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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