________________ ___ यों तो ब्रह्मचारी जी विश्वमानव थे, राष्ट्रीय दृष्टि से भारतीय और धार्मिक दृष्टि से जैन थे। इससे अधिक छोटे दायरे में उन्हें सीमित रखना उचित नहीं लगता / तथापि, जब उनका जीवन परिचय दिया गया है, तो उनके वंशक्रम का भी उपलब्ध परिचय दे देना असंगत नहीं होगा। लगभग डेढ़ सौ वर्ष पूर्व उत्तरप्रदेश के लखनऊ नगर में गोयल गौत्रीय अग्रवाल-वैश्य जातीय एवं दिगम्बर जैन धर्मावलम्बी श्री पृथ्वीदास नामक सज्जन रहते थे / उनके दो पुत्र थे, रामचन्द्र तथा रामसुखदास / रामचन्द्र के पुत्र मंगलसेन थे और उनके पुत्र मक्खन लाल थे, जिनके चार पुत्र संतूमल, अंतूमल, शीतलप्रसाद, और पन्नालाल तथा एक पुत्री राधाबीनी थी। इनमें से संतूमल के पुत्र धर्मचन्द्र और सुमेरचन्द्र चिकनवाले थे / धर्मचन्द्र के दत्तक पुत्र महावीर प्रसाद हैं और सुमेरचन्द्र के पुत्र वीरचन्द्र व दीपचन्द्र हैं। राधाबीबी के पुत्र बरातीलाल बर्तनवाले थे, जिनके पुत्र इन्दरचन्द्र बर्तनवाले, गोपालदास आदि हैं। पृथ्वीदास के द्वितीय पुत्र रामसुखदास के पत्र मामराज थे, उनके बिहारीलाल और विशेश्वरनाथ थे जो कानपुर में जा बसे / उनके पुत्र मूलचन्द्र थे, जिनके पुत्र कपूरचन्द करांची खाने वाले थे / उनके पुत्र धूपचन्द्र थे और धपचन्द्र के रविचन्द्र हैं, जो अपने पितामह एवं पिता की भाँति हो ब्रह्मचारी जी के परमभक्त, परिषद के प्रेमी और कानपुर के उत्साही समाजसेवी हैं / ब्रह्मचारी जी के भानजे ला० बराती लाल की भाँति उनके पुत्र इन्दरचन्द्र भी परिषद प्रेमी एवं अच्छे समाज सेवी हैं / ब्रह्मचारी जी के अग्रज ला० सन्तूमल अच्छे धार्मिक कवि थे, "खसरंग उपनाम" से रचना करते थे। उनका "खुशरंग विलास" बहुत असी हमा, तब छपा था। उनके पुत्र धर्मचन्द्र अच्छे पंडित थे, और सुमेरचन्द्र भो धार्मिक रचनाएँ करते थे। वास्तव में तो व्यक्ति अपने स्वयं के कृतित्व से ही आदर का पात्र होता है, जैसा कि किसी शायर ने कहा है : मैं पूछता नहीं, तुम्हारा नाम है, क्या / न यह कि नाम बुजुर्गो का और मुकाम है क्या / / तुम्हारे काम गर अच्छे, तो नाम अच्छे हैं। घराने अच्छे, घर अच्छे, तमाम अच्छे हैं / (16)