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________________ 44] ससुराल जाते समय ECRECTESCREDICTECRECTEDORESCRECTECTESCRECTECH बडी भूल है। इसलिये इन्हें चाहिए कि अपने गुरूजनोंसे चाहे वे पितापक्षके होवें, चाहें श्वसुर (पति) पक्षके हों सबके स्वयं पांव पूजें (पावा ढोक करें।) (34) अंतिम निवेदन यही है कि गृहास्थाश्रम एक बड़ा भारी वृक्ष है। इसलिये इसकी छाया में आनेवाले व इसका आश्रय लेनेवाले सब जीवोंका यह हितकारी व मनोवांछित फलदाता होना चाहिए। तात्पर्य यह है कि परोपकार, दान अतिथिसेवा, देवार्चन पठनपाठनादि कार्योसे गृहस्थोंकी शोभा होती है जैसा कि निम्नलिखित श्लोकसे विदित होता है। इसलिये उसपर ध्यान देना चाहिये : सानंद सदनं सुतास्तु सुधियः, कांताऽमृतं भाषिणी। इच्छा ज्ञानधनं स्वयोषिति रतिः, स्वाज्ञापरा सेवकाः॥ आतिथ्यं जिनपूजनं प्रतिदिनं मिष्टणन्नपान गृहं / साधोः संगमुपासते हि सततं, धन्यो गृहस्थाश्रमः॥ अर्थात् - जिस घरमें नित्य आनंदका वास हो (सब प्रसन्न चित्त हों), पुत्र बुद्धिमान हों, स्त्री मिष्टभाषिणी हो, ज्ञान ही जहां धन हो, पुरुष अपनी स्त्री पर प्रेम करनेवाला हो, सेवक आज्ञाकारी हो, जहां अतिथियोंका सत्कार (दान) होता हो, जिसमें जिन भगवानकी पूजन होती हो, जहां मिष्टान ( स्वादिष्ट शुद्ध) भोजन बनता हो, और जहां साधुओंका समागम रहता हो, वह घर (गृहस्थाश्रम) धन्य है। प्रिय बन्धुओ और बहिनो तथा बेटियो! कहां हैं आज वे माताएं जो अपनी बेटियोंको उक्त प्रकार शिक्षण देती थी? हाय! आज इस आर्यावर्तमें द्विज वर्णो में भी स्त्री महिलाओका
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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