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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [19 ECREOCRACREACHEOCHEOCHOCKEOCSOCIEOCHOCHECSEOCs आदि पदार्थ भी संग्रह कर रखा करना, तथा योग्य समयमें धनका व्यय भी यथायोग्य करके अपनी उदारवृत्तिका परिचय देते रहना। परंतु “अकाले दिवाली"अर्थात् व्यर्थ व्यय कभी नहीं करना। (33) बेटी! "कोड़ीर खजाना और बून्दर दहाना" भर जाता है, ऐसा करके गरीब भी पैसा इकट्ठा कर सकता है, इसलिये तू अपने घरकी आय व्ययका विचार करके समयानुसार कुछ कुछ बचत भी करते रहना। (34) बेटी! तू निरन्तर अपनी शक्ति प्रमाण आहार, औषधि शास्त्र और अभय ये चार प्रकारके दान भी करते रहना। धर्मायतनोंमें सत्पात्रादिकोंमें भक्ति और दीन-हीन पुरुषोंमें करुणा भाव रखना, क्योंकि हाथका दिया ही साथ जाता है। इसलिये इसमें संकोच न करना अर्थात् शक्ति नहीं छुपाना। मनुष्यको अपनी आयका चतुर्थांश विपत्तिकाल व वृद्धावस्थाके लिये और चतुर्थांश लग्नादि व्यवहारकार्योंके लिये अवश्य ही संग्रह रखना चाहिये, और शेषांश भोजन वस्त्रादिमें व्यय करना चाहिये। परंतु निम्न वाक्य याद रखना कि नीति न मीत गलित भये, सम्पति धरिये जोर। खाये खर्चे (दानसे) जो बचे, तो जोरिये करीर॥ अर्थात् भूखे मरकर या व्यवहार बिगाड़कर जोडना भी अच्छा नहीं होता। (35) बेटी! तेरे घरमें जो सहव्यवहार व उत्तम रीति नीति कुलपरंपरासे चली आती हो, उसे एकदम बिना समझें नहीं छोड़ देना, किंतु श्रद्धा सहित पालन करना और जो व्रत-नियम स्त्रियोंके लिये आवश्यक हों उन्हें समझकर बराबर करते रहना,
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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