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________________ पुत्रीको माताका उपदेश [17 &XSECREECHOCHOCHECRECROCHOREOCSEOCEDURES हों या अन्यान्य कारणोंसे न जा सकें तो घर पर ही किसी सुयोग्य वृद्ध सदाचारिणी महिला द्वारा या अपने ही घरके बच्चोंके द्वारा और चतुराईसे तू आप ही उन्हें पढ़ानेकी चेष्टा करना कि, जिससे वे अपना समय जो गृहकार्यों में बचता हैं व जिसमें वहांकी संगति व गप्पाष्टकें होती हैं वे शास्त्रावलोकनमें लगा सके। तथा जब तू अवकाश पाकर अपना स्वाध्याय करने बैठे तो उनको भी बुला लिया कर कि जिसे सुनकर वे संसारके विषयोंसे विरक्त भावको दृढ़ करती रहें। और सुन, उनके साम्हने कोई ऐसी हँसी आदिके व्यवहार व चर्चाएं कभी न करना कि जिससे उनको संसारिक विषयोंकी ओर उत्तेजना मिले। क्योंकि यदि इन बेचारी विधवाओंको योग्य शिक्षा और सत्संगति मिलती रहे तो ये कभी भी अपने कर्त्तव्य व आचरणसे पीछे न पड़े। __इनको सादे मोटे सफेद या कत्थई आदि रंगके वस्त्र पहिननेमें, शुद्ध सादा हितमित भोजन खानेमें, उचित व्यवहार, घरमें सत्संग और धर्मशिक्षा मिले व विरुद्ध संगति व स्वतंत्र आहार विहार और उत्तेजक वस्त्राभूषण ( जो एक ब्रह्मचारिणी या ब्रह्मचारीको अनुसेव्य हैं) वर्तावमें न आवे तो ये भारतीय नारियां अपने आदर्शको यावजीव कायम रख सकती हैं। (28) धर्म, नीति व सत्य हितोपदेशकी पुस्तकोंका स्वाध्याय तू अवश्य ही अवकाशानुसार करते रहना। परंतु दंतकथाओं व श्रृङ्गाररससे भरी हुई पुस्तकोंको कभी हाथ भी नहीं लगाना और न नाटक आदि मनकों बिगाड़नेवाले खेलोंको कभी देखने सुननेकी इच्छा रखना। परंतु हां! ईश्वरभक्ति व नीति तथा धर्मके गीतोंको गाने तथा सुनने में हानि नहीं हैं।
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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