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________________ 12] ससुराल जाते समय BSBSBUSBUSBUSBUSBUSBUSBUSBOCSECSECSENIOS (ग) हे स्त्री! आजसे मेरा सम्बन्ध तुझसे हुआ। जिस प्रकार चंद्रमाकी चांदनी, सूर्यका रोहिणी तथा दीपकका प्रकाशसे संबंध है, उसी प्रकार तू भी आजसे मेरी अर्धाङ्गिनी हुई। इसलिये हम तुम दोनों अपने२ वचनोंका निर्वाह करते हुए, गृहस्थ-धर्मका पालन करके उत्तम संतान प्राप्त करें। (घ) हे स्त्री! हम दोनोंको परस्पर निष्कपट प्रेम रखना चाहिए और परस्पर हितकारी तथा सम्मतिपूर्वक वचन कहना चाहिये। दोनोंको हिलमिलकर रहना चाहिये। क्योंकि हम दोनोंका जीवनपर्यंत साथ रहना है और इसीमें हम दोनोंका हित व सुख है। (छ) हे स्त्री! आजसे तू हमारे कुलमें सम्मिलित हुई इसलिये तू मेरे वाम भागमें आ और अपने मनको अपनी प्रतिज्ञाओं पर दृढ़ कर। (24) बेटी! तत्पश्चात् जब सप्तपदी (सात भांवर) होती है तब वर (पति) प्रत्येक पदपर पत्नीसे कहता है, उसका आशय तू सुन। पति कहता है (क) हे स्त्री! आज तू मेरे सात एक पद ( प्रदक्षिणा) चली, जिससे तू मेरी सहायक समझी जाती है, इसलिये तू मेरे धर्म अर्थ कामादि सम्पूर्ण कार्यों में सहायता करना, और शुद्ध भोजनादिसे मेरू पूर्ति करते रहना, देख, शुद्ध भोजन बनानेसे एक यह भी लाभ होगा कि यदि हमारे पुण्योदयसे कोई मुनि आर्जिका तथा संयमी व्रती श्रावकादि अतिथियोंका समागम हो जाया करेगा, तो उनका निरन्तराय अनुदृष्ट भोजन दान दे सकेंगे। और कदाचित न भी मिले तो भी शुद्ध भोजन बननेसे द्वारा प्रेक्षण करने और अतिथिलाभकी
SR No.032878
Book TitleSasural Jate Samay Putriko Mataka Updesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDipchand Varni
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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