SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चर्या पूर्णतः आगम अनुकूल निर्दोष और सर्व प्रकार से प्रशस्त थी ! उन्होंने यम सल्लेखनापूर्वक समाधि मरण धारण किया था। विद्वत्जगत को उनके इस महान प्रयास की मुक्त कण्ठ से सराहना करनी चाहिये और आगम विरुद्ध कथन करने से लेखन से यथा संभव बचने का प्रयास करना चाहिये। कहा भी है - तूं थाप निजको मोक्ष पथ में, घ्या अनुभव तूं उसे / उसमें ही नित्य विहारकर, न विहारकर पर द्रव्य में॥ // स.सा.गा. 412 // सोलापूर - मन्नूलाल जैन वकील सागर (मध्य प्रदेश) 27.9.96 इस पुस्तक के प्रकाशन में अर्थ सहयोग देने वाले दातार (१)श्री सहजात्मत्वरूप परमगुरु ट्रस्ट - अहमदाबाद 6000 रु. (2) श्री अजित सुभाष शहा - सोलापुर 6000 रु. (3) कल्पवृक्ष स्वाध्याय मंडल - पुणे 2000 (4) श्रीमती प्रभा लोहाडे - पुणे . (5) श्रीमती मंजुला बाकलीवाल - कोटा 1000 रु - दातारों का हार्दिक आभार - संपादिका 1000 रु. इस पुस्तक की छपाई में गाथा-श्लोक आदि में जो भी अशुद्धियाँ रह गयीं हैं वे हमारी गलती से हुई हैं, अतः क्षमा चाहते हैं / ५कों से निवेदन है। कि वे कृपया सुधार कर पढ़ें और उन गलतियों से हमें भी अवगत करावें। -संपादिका
SR No.032868
Book TitleNijdhruvshuddhatmanubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar, Lilavati Jain
PublisherLilavati Jain
Publication Year2007
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy