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________________ (40) जब शुध्दात्मानुभव में अधिक दृढता होगी तब वह जीव अपने . आप व्रती हो जाता है, व्रती बनना नहीं पडता / ' कोई जीव इसी भव में अव्रती गृहस्थ अवस्था में शुध्दात्मानुभव करेगा और आगे के किसी भव में व्रती होगा। उदाहरणार्थ - श्रेणिक ने मनुष्यभवे में शुध्दात्मानुभव किया अभी नरक में है तो भी शुध्दात्मानुभव करता है / आगे के मनुष्यभव में वह जीव व्रती बनेगा और मोक्ष जायेगा। कोई जीव इसी भव में अव्रती गृहस्थ अवस्था में शुध्दात्मानुभव करेगा, कुछ काल बाद उसी भव में व्रती बनेगा / जैसे भरत चक्रवर्ती के 923 पुत्र तो जन्मते समय अनादि मिथ्यात्वी थे / उस के बाद प्रथमोपशम सम्यक्त्व ( शुध्दात्मानुभव ) प्राप्त किया / कुछ काल के बाद क्षयोपशमक्षायिकसम्यक्त्वी (शुध्दात्मानुभवी) हुए ।उस के बाद महाव्रती हुए और उसी भव से मोक्ष गये। ... सीता जन्म के समय मिथ्यात्वी थी, उस के बाद उसने शुध्दात्मानुभव प्राप्त किया उस के बाद उसने देशसंयम प्राप्त किया। - 21) शंका - ऐसा कहते हैं कि, धवलाकार ने दशवें गुणस्थान तक धर्मध्यान माना है, तो शुध्दात्मानुभूतिवाला ( स्वभाव का) धर्मध्यान केवल सकलसंमयी को होता है। अविरत सम्यक्त्वी में और देशविरत सम्यक्त्वी में स्वभाव के ध्यान का ( धर्मध्यान का) खपुष्पवत् अभाव है, ऐसा मानेगे तो क्या बाधा आती है ? उत्तर - तो आपकी इस मान्यते से (1) चतुर्थगुणस्थानवाले को और - देशसंयमी को निश्चय सम्यक्त्व नहीं है, ऐसा सिध्द होगा / यह बात धवलाकार को ( श्री वीरसेनाचार्यजी को ) मान्य नहीं, क्योंकि उन्होंने धवल पुस्तक 13 में पृष्ठ 74 पर लिखा है कि -- : असंजदसम्मादिट्ठी-संजदासंजद-पमत्तसंजदअप्पमत्तसंजद- . अप्पुव्व-संजद-अणियट्टिसंजद सुहुमसांपराई यरववगोवसामएसु धम्मज्झाणस्स पवुत्ती होदित्ति जिणोवएसादो।'
SR No.032868
Book TitleNijdhruvshuddhatmanubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar, Lilavati Jain
PublisherLilavati Jain
Publication Year2007
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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