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________________ सुखरूपी सुधा के आस्वाद के बल से | त्यागलक्षणरूप पांच प्रकार के व्रत हैं। सब शुभाशुभ रागादि विकल्पोंकी जो निवृत्ति वह व्रत है। . २)व्यवहारेण तद्बहिरंग . 2) निश्चयेनानन्तज्ञानादि | सहकारिकारणभूताचारादिचरणग्रन्थोक्ता स्वभावे निजात्मनि सम् सम्यक् ईर्याभाषणादाननिक्षेपोत्सर्गसंज्ञा : समस्तरागादिविभावपरित्यागेन | पञ्च समितियाः। तल्लीनतच्चिन्तनन्मयत्वेन अयनं गमनं परिणमनं समितिः | व्यवहार से उसके बहिरंग सहकारि . निश्चय से अनंतज्ञानादि- कारणभूत आचारादि चरणानुयोग के स्वभावी निजात्मा में सम् अर्थात् | ग्रन्थों में कथित ईर्या, भाषा एषणा, सम्यक् प्रकार से सब रागादि | आदान निक्षेपण और उत्सर्ग नामक विभावोके परित्याग द्वारा निजात्मा में पांच समितियाँ हैं। लीनता- चिंतन- तन्मयता से 'अयन' - गमन परिणमन करना वह समिति है। ... 3) निश्चयेन सहज- 3) व्यवहारेण शुद्धात्म भावनालक्षणे गूढस्थाने बहिरङ्गसाधनार्थं मनोवचनकाय संसारकारण रागादिभयात्स्व- व्यापार निरोधो गुप्तिः / स्यात्मनो गोपनं प्रच्छादनं झम्पनं प्रवेशनं रक्षणं गुप्तिः। निश्चय से सहजशुद्धात्माकी | व्यवहार से बहिरंग साधन के लिये भावनारूपलक्षणयुक्त गुप्त संस्थान में मन, वचन और काया के व्यापार को (अपने निजपारिणामिकभाव में) संसार रोकना वह गुप्ति है। के कारणरूप रागादि के भयों से अपने आत्माका छिपाना, ढकना, झम्पना, प्रवेश करना, अथवा रक्षा करना वह , गुप्ति है।
SR No.032868
Book TitleNijdhruvshuddhatmanubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar, Lilavati Jain
PublisherLilavati Jain
Publication Year2007
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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