SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 4
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भाव सुमनांजली प्रा. सौ. लीलावती जैन प.पू. अध्यात्मयोगी 108 श्री वीरसागर महाराज जी के चरणों में त्रिवार नमोऽस्तु ! 10 मार्च को महाराज जी की 14 वीं पुण्यतिथी आती है / इस अवसर पर उनकी पावन स्मृति में निजयुमशुद्धात्मानुभव' यह छोटीसी पुस्तक आपके हाथ में देते हुए हम आनंद का अनुभव कर रहे हैं / इस पुस्तक की.४ आवृत्तियाँ - 4000 पुस्तकें सोलापुर से पहले वितरीत हो चुकी है। परंतु माँग बढ़ने के कारण यह 5 वी आवृत्ति (प्रतियाँ 1000) निकाल रहे हैं। इन दिनों कुछ विद्वानों एवं मुनिराजों में यह चर्चा का विषय चल रहा है कि - अविरत सम्यक्त्वी के (गृहस्थ के) शुद्धात्मानुभूति (चतुर्थ गुणस्थान में) नहीं होती। पू. वीरसागर जी मुनिराज ने इस विषय को लेकर कई शास्त्रों के गहरे अध्ययनपूर्वक अनेकों प्रमाण प्रस्तुत किये और प्रत्यक्ष प्रामाण्यसहित सिद्ध कर दिया कि अविरत सम्यक्त्वी के शुद्धोपयोग होता है। यह उन्हीं प्रमाणों का संकलन है जो इस विषय को लेकर सारे सम्भ्रम दूर कर सकता है। इसके पहले 'सम्यक् सम्यक्त्व चर्चा' - ब्र. हेमचंद जी जैन 'हेम' -भोपाल द्वारा प्रस्तुत एक छोटीसी पुस्तक हमने अनेकों विद्वानों एवं मुनिराजों को भेजी है। इस में भी इस विषय को लेकर कुछ प्रमाण प्रस्तुत किये थे। इस पुस्तिका के प्रकाशन के पश्चात् इस निजशुद्धात्मानुभव' पुस्तक की मांग बढ़ गयी। अतःयह छोटीसी पुस्तक हम आपको, अनेका मुनिराजा एवं विद्वानों को भेज रहे हैं। आशा है आप अपने अभिप्राय से अवगत करायेंगे। स्वयं पढ़ेंगे और अन्यों को पढ़ने के लिए देंगे। पू. वीरसागर जी महाराज की 14 वीं पुण्यतिथी के पावन अवसर पर उनके उपदेशित विषय को आप जैसे मर्मज्ञों के हाथों तक पहुँचाना ही उनको सच्ची श्रद्धांजली है।अन्य सभी मुनिराजों, विद्वान पंडितों के प्रति अत्यंत आदर भाव रखते हुए हम विनम्र निवेदन कहना चाहते हैं कि 'आगम के आलोक में आप इस विषय को देखें और परखें। भाव किसी के अविनय का नहीं है। पंचम काल के इस विनाशकारी तुफान में हम अपने पावन आत्मधर्म की नाव की पतवार पूरी क्षमता के साथ सम्भाले, स्वयं मिथ्या धर्म से बचें, औरों को भी बचने में निमित्त बनें / ऐसी स्थिति में ऐसी छोटी परंतु दीपस्तंभ जैसी मार्गदर्शक पुस्तकें ही हमारे लिए पथप्रदर्शक सिद्ध होंगी।... इसी आशा के साथ - संपादिका , धर्ममंगल, औंध -पुणे
SR No.032868
Book TitleNijdhruvshuddhatmanubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar, Lilavati Jain
PublisherLilavati Jain
Publication Year2007
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy