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________________ (स्वशुद्धात्मानुभूतिवाला) नहीं होता है (याने शुद्धात्मानुभूति करनेवाला ही सम्यग्दृष्टि होता है)। “किंच रागी सम्यग्दृष्टिर्न भवतीति भणितं भवद्भिः तर्हि चतुर्थपंचमगुणस्थानवर्तिनः तीर्थंकरकुमारभरतसगररामपांडवादयः सम्यग्दृष्टयः न भवन्ति इति ?" .. यदि रागी जीव सम्यग्दृष्टि (शुद्धात्मानुभूतिवाले) नहीं होते हैं ऐसा कहते हो, तो क्या चतुर्थ पंचमगुणस्थानवर्ती तीर्थंकर, भरत, सगर, राम और पांडव, कुमार अवस्था में सम्यग्दृष्टि याने शुद्धात्मानुभूतिवाले नहीं होते हैं ? "तन्न / " चतुर्थ पंचमगुणस्थानवर्ती तीर्थंकर, भरत, सगर, राम और पांडव, कुमार अवस्था में सम्यग्दृष्टि (शुद्धात्मानुभूतिवाले) नहीं थे, ऐसा नहीं है / अर्थात् चतुर्थ पंचम गुणस्थानवाले जीव सम्यग्दृष्टि (शुद्धात्मानुभूतिवाले) हैं। क्योंकि_. “मिथ्यादृष्टयपेक्षया त्रिचत्वारिंशत्प्रकृतीनां बंधाभावात् सराग सम्यग्दृष्टयः भवन्ति।" मिथ्यादृष्टि की अपेक्षासे 43 प्रकृतियों के बंध का अभाव होने से सरागसम्यग्दृष्टि (अविरत सम्यक्त्वी-चतुर्थगुणस्थानवाले) होते हैं। "कथं ? इति चेत् 1" - प्रश्न - चतुर्थ पंचमगुणस्थानवाले सरागी होते हुए भी सम्यग्दृष्टि (शुद्धात्मानुभूतिवाले ) कैसे हैं ? . "चतुर्थगुणस्थानवर्तिनां जीवानां अनंतानुबंधिक्रोधमानमायालोभ मिथ्यात्वोदयजनितानां पाषाणरेखादिसमानानां रागादीनां अभावात् / " ____ उत्तर - चतुर्थगुणस्थानवर्ती जीवों को अनंतानुबंधी क्रोध मान माया लोभ मिथ्यात्व के उदय में होनेवाले पाषाण रेखादि समान रागादि का अभाव होने से चतुर्थ गुणस्थानवर्ती जीव सम्यग्दृष्टि (शुद्धात्मानुभूतिवाले) होते हैं / "पंचमगुणस्थानवर्तीनां पुनर्जीवानां, अप्रत्याख्यान क्रोधमानमायालोभोदय जनितानां, भूमिरेखादि समानानां रागादिनां अभावात् / " पुनः पंचमगुणस्थानवी जीवोंको अप्रत्याख्यान क्रोध मान माया लोभ
SR No.032868
Book TitleNijdhruvshuddhatmanubhav
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVeersagar, Lilavati Jain
PublisherLilavati Jain
Publication Year2007
Total Pages76
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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