________________ रूप से जन्म नहीं होता है। तिर्यश्चों में तीर्थङ्कर प्रकृति के सत्त्व का निषेध है। “तिरियेण तित्थसत्तं' यह वाक्य गोम्मटसार कर्मकाण्ड (गा. 345) में आया है। तीर्थक्कर के गुण : भगवान् के अनन्त ज्ञान, अनन्त दर्शन, अनन्त सुख तथा अनन्त वीर्य रूप अनन्त चतुष्टय पाये जाते हैं। इस प्रकार दस जन्मातिशय, दस केवलज्ञान के अतिशय, चतुर्दश देवकृत अतिशय, अष्टप्रातिहार्य तथा अनन्त चतुष्टय मिलकर तीर्थङ्कर अरहंत के छियालीस गुण माने गये हैं। चार घातिया कर्म के नष्ट होने पर भगवान् यथार्थ में निर्दोष अरहत पदवी के अधिकारी बनते हैं। - - -