________________ मोहन-जोदड़ों, हड़प्पा के प्राप्त अवशेषों में लता मण्डप वेष्टित नग्नाकृति तथा जोगीमारा की गुफाओं में प्राप्त भित्तचित्रों में लतावेष्टित बाहबली आदि चित्र प्रागैतिहासिक कला तथा प्राचीन कला में बाहबली रूपांकन की लोकप्रियता का प्रमाण है। पोथी चित्रों में प्रस्तुत ग्रन्थ सचित्र आदिपुराण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। चित्रकला, काव्यकला, साहित्य और संगीत में ही नहीं मूर्तिकला में विश्व की अनुपम, अनूठी मूर्ति श्रवलबेलगोला की दशमी शताब्दी में बनी बाहुबली गोमटेश की 57 फुट ऊँची प्रतिमा विश्व के आठ आश्चर्यों में सम्मिलित है। प्रस्तुत सचित्र ग्रन्थ इसी काल (दशवी शताब्दी) का आलेखित और रूपाकिंत महान् ग्रन्थ है। प्रस्तुत आलेख में इस ग्रन्थ के दृष्टान्त चित्रों के रंगीन फोटोग्राफ (4) तथा फोटोस्टेट (7) संलग्न किये गये है. जो रूपाकतियों का कलात्मक स्वरूप तथा आधिदैविक प्रतीकात्मक भाव व्यञ्जना को अभिव्यक्त कर रहे हैं। इस सन्दर्भ ग्रन्थ-सूची में आलेख की प्रामाणिकता स्पष्ट की गयी है। आलेख में काव्य, चित्र, मूर्तिकला के समन्वय से आध्यात्मिक छटा को उद्योतित किया गया है। काव्यकला श्रव्यकला के रूप में भावात्मक रसानुभूति कराती है वहीं चित्रकला दृश्यकला में रूपाभिव्यक्त कर नेत्रों को आनन्दित करती हुई हृदय को भावानुभूति प्रदान कर सरस कर देती है। इन पोथियों में दृष्टान्त चित्रों के माध्यम से विषय को हृदयांगम कराया गया है। ये लघु चित्र रूप भेद प्रमाण, भाव, सादृश्य, लावण्य योजना तथा वर्णिका भंग के अन्तर्गत रूप, रस, रंग की रम्यता में उत्कृष्ट है। कथानक के शोष्ठव को वृद्धिगत करने में अद्वितीय भूमिका का निर्वहन करते हैं। 113 -