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________________ जैन परम्परा में योग ध्यान का पहला साधन समत्व है, इस संबंध में हेमचन्द्राचार्य ने लिखा हैसमत्वमवलम्ब्याथ ध्यानं योगी समाश्रयेत् / विना समत्वमारब्धे ध्याने स्वात्मा विडम्ब्यते // समत्व का आलम्बन लेकर योगी ध्यान का अभ्यास करे। समत्व के बिना ध्यान ' का प्रारम्भ करना आत्म-विडम्बना मात्र है। ध्यान को आत्मज्ञान का एकमात्र साधन बताते हुए वे कहते हैंमोक्षः कर्मक्षयादेव स चात्मज्ञानतो भवेत् / ध्यानसाध्यं मतं तच्च तद् ध्यानं हितमात्मनः॥7 मोक्ष की प्राप्ति कर्मक्षय से ही होती है। कर्मक्षय आत्मज्ञान से होता है / आत्मज्ञान का साधन ध्यान है, जो आत्मा का परम हितैषी तत्त्व है / आचार्य हेमचन्द्र भी शुभचन्द्र की तरह पिण्डस्थ, पदस्थ, रूपस्थ एवं रूपातीतइन चार ध्यानों को स्वीकार करते हैं / 78 योगशास्त्र के आठवें प्रकाश के ज्ञानार्णव के पैंतीसवें प्रकरण से तुलनात्मक अध्ययन की आवश्यकता का निर्देश हम ऊपर कर चुके हैं / योगशास्त्र के बारहवें प्रकाश में हेमचन्द्र ने ध्यान विषयक स्वयं अनुभूत तत्त्वों की चर्चा की है। इस प्रसंग में वे चित्त के ये चार प्रकार बताते हैं—विक्षिप्त, यातायात, श्लिष्ट एवं सुलीन / बहिरात्मा, अन्तरात्मा एवं परमात्मा के स्वरूपों का निर्देश भी वहीं प्राप्त है / 80 ध्याता के लिए समस्त अवयवों के शिथिलीकरण का विधान किया गया है। 81 इसके फलस्वरूप उन्मनीभाव का लक्षण इस प्रकार बताया गया है बहिरन्तश्च समन्ताच्चिन्ता-चेष्टापरिच्युतो योगी। तन्मयभावं प्राप्तः कलयति भृशमुन्मनीभावम् // 2 बाह्य एवं प्राभ्यन्तर–सभी प्रकार के चिन्तन एवं चेष्टानों को त्याग कर योगी तन्मयभाव को प्राप्त होता हुआ अत्यन्त उन्मनीभाव को प्राप्त करता है / आगे वे कहते हैं कि चित्त का कृत्रिम निग्रह हानिकारक है / इस प्रकार के निग्रह से विरक्त रहकर ही योगी शान्ति प्राप्त कर सकता है / चेतोऽपि यत्र यत्र प्रवर्तते नो ततस्ततो वार्यम् / अधिकोभवति हि वारितमवारितं शान्तिमुपयाति // 3 तात्पर्य यह है कि चित्त के सहज प्रवाह को समभाव से अवलोकन करने मात्र से ही चित्त शान्त हो जाता है। IX यशोविजयकृत द्वात्रिंशिकाओं में योग "उपाध्याय यशोविजय ने अध्यात्मसार, अध्यात्मोपनिषत् तथा सटीक बत्तीस बत्तीसियां योग संबंधी विषयों पर लिखी हैं, जिनमें जैन मन्तव्यों की सूक्ष्म और रोचक
SR No.032865
Book TitleJaina Meditation Citta Samadhi Jaina Yoga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathmal Tatia
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1986
Total Pages170
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & Book_English
File Size12 MB
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