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________________ श्रीमती मनोरमादेवी [63 _____नारीका भूषण शील ही है। इसीसे उनकी शोभा है। शीलवती नारी जिस घरमें रहती है वहां सुतक पातक कभी नहीं होता है और जहां कुलटा रहती है वहां दिन रात सूतक पातक रहता है, ऐसा जिन शासनका वचन है। शीलहीसे शीवपदकी प्राप्ति होती है, इन्द्र अहमिन्द्र आदिके पद भी इसीके सेवनसे मिलते हैं। शीलवतीको विपत्तिकी घड़ी भी सुलभतासे कट जाती है और पगमें सुख ही सुख मिलता है। ___ संसारमें शीलकी महिमा अपरम्पार है। यही सार है। व्रत धर्म पालनेका प्रत्यक्ष फल इससे बढ़कर और क्या होगा कि स्वर्गके देवोंने भी मनोरमाकी सहायता की। इसलिए जगत मात्रके नरनारियोंको शीलव्रत धारण करना उचित है। वह दिन कैसे महत्त्वका होगा जिस दिन भारतकी गौरव लक्ष्मीको फिरसे प्राप्त करनेके लिए मनोरमा सुन्दरी जैसी गृहलक्ष्मी आकर भारतके हरएक गृहस्थके घरमें जन्म लेंगी, उस दिनकी प्रशंसा नहीं की जा सकती। हम परमात्मासे प्रार्थना करते हैं कि उस दिनके शीघ्र दर्शन हों और ऐसी ही पतिव्रता हमारे गृहोंको अपनी चरणरजसे पवित्र करें।
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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