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________________ 56] ऐतिहासिक स्त्रियाँ महिलाकुलभूषण ७-श्रीमती मनोरमादेवी मनोरमादेवी धन-धान्यसे परिपूर्ण भारतवर्षकी प्रसिद्ध नगरी उज्जैनके सुप्रसिद्ध सेठ महीदत्तकी कन्या थी। इकलौती कन्या होनेसे माता पिताका इनके उपर असीम प्रेम था। 8 वर्षकी अवस्था होने पर ये संसारसे विरक्त एक जैन साध्वी (जिसे आर्जिका कहते हैं) के पास शिक्षा प्राप्त करनेके लिये भेजी गई। गृहकार्यकी सम्पूर्ण शिक्षासे दीक्षित होनेपर आर्जिकाने अंतिमवार पातिव्रतधर्मका एक व्रत देकर कि "मन, वचन, कायसे अपने पतिके सिवाय किसी अन्य पुरुषको अधर्म दृष्टिसे नहीं देखना!" तथा इसके पालनेकी प्रतिज्ञा देकर कुमारीको माता-पिताके यहां भेज दिया। 16 वर्षकी आयु होनेपर कुमारीकी यौवनावस्थाको विचार कर सेठ महीदत्तने अपने पुरोहितको बुलाया और उसके हाथमें टीकेके लिए बहु मूल्य मोतियोंका हार दे कुमारीके योग्य वरकी खोजमें भेजा। पुरोहितजी वरकी तलाशमें फिरते फिरते कौशल प्रदेशमें वैजयंती नगरमें पहुंचे। वहांके महामान्य सेठ महीपाल जौहरीके पुत्र कुमार सुखानन्दको गुण, अवस्था आदिमें कुमारीके योग्य वर समझ उन्हें हार व श्रीफल देकर सम्बन्ध निश्चित कर वापिस उज्जैनमें आये। तथा सुखानन्दकुमारकी यथायोग्य प्रसंशा सेठ महीदत्तसे कर संबंध निश्चित होनेका समाचार सुनाया। शुभ तिथि पर मनोरमादेवी और कुमार सुखानन्दका विवाह सम्बन्ध हो गया और कुमारी अपने पतिके यहां जाकर गृहकार्यमें प्रवृत्त हुई।
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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