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________________ प्रस्तावना हर्षका विषय है कि ऐतिहासिक स्त्रियोंका यह संस्करण श्री. स्व. मूलचन्द किसनदासजी कापडिया, दि. जैन पुस्तकालय सूरत द्वारा प्रकाशित हो रहा है। सन् 1913 ई. में स्वर्गीय बाबू देवेन्द्रप्रसादजी आरा निवासीने इन कथानकोंका संकलन किया था। जैन स्त्री समाजको लक्ष्य कर प्रकाशित होनेवाली यह प्रथम पुस्तक कही जा सकती है। उक्त बाबू साहिबका यह श्रम समाजको बहुत पसंद आया और अबतक इसकी हजारों प्रतियां जैन महिलाओंके हाथोंमें चली गयीं। ऐतिहासिक स्त्रीयां सभीको उपयोगी ज्ञात हुई। स्व. जुगमंदिरलालजी जैनी एम. ए. बार-एट-लॉ जज हाईकोर्ट इन्दौरने अपनी सम्मति लिखते हुए इस पुस्तकको समस्त कन्याशालाओंके पठनक्रममें रखनेकी प्रेरणा दी है। ___ वास्वतमें पुस्तक शिक्षाप्रद है। जैन सतियोंका इतिहास और उनकी दृढ़ता समझनेके लिये इसको शालाओंमें अवश्य पढ़ना चाहिये, जिससे कि विद्यार्थिनियोंको पूर्व देवियोंका चरित्र मालूम हो जाय और उनके जीवन पर इन सतियोंकी धाक भी पड़ जाय। इस पुस्तकमें 8 चरित्र अंकित किये गये हैं। इनसे बड़ी उत्तम शिक्षा प्राप्त होती है। श्री राजुलदेवीसे शीलधर्मका अद्वितीय शिक्षा मिलती है। तथा जगत-प्रसिद्ध सीताजीके चरित्रसे संकटमें रहकर भी अपने धर्मकी रक्षा किस प्रकारकी जाती है, इस दृढ़ताका पाठ मिलता है, इसी प्रकार महारानी चेलनादेवीसे पति सुधारकी व महारानी मैनासुन्दरीसे विचित्र पति सेवाकी शिक्षा मिलती है। वीर नारी द्रौपदीके जीवनसे प्रभुभक्ति और पतिभक्तिके उत्तम फलका प्रदर्शन होता है। तथा इसी प्रकार अंजनासुन्दरी व मनोरमादेवी और रानी रयनमंजूषाके चरित्र भी आदर्श रूप सन्मुख उपस्थित होते हैं। बहिनोंको एक२ प्रति मंगाकर पास रखना चाहिये। ब्र. स्व. प. चंदाबाई जैन, जैन बालाविश्राम-आरा (बिहार)
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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