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________________ 50] ऐतिहासिक स्त्रियाँ प्रकृतिने उत्तर दिया-नहीं! उसी समय इनको अञ्जनाके युद्धमें कूचके समय आनेकी बात याद आई, जिससे इनका शरीर विह्वल हो गया। प्रेमाश्रुसे नेत्र परिपूर्ण हो गये। मित्रसे इन्होंने उसी समय अञ्जनासुन्दरीसे मिलनेका अपना विचार प्रगट किया और गुप्त रीतिने रात्रिहीमें अञ्जनासुन्दरीके महलोंमें आये, तो सुन्दरीका हृदय आनन्दसे प्रफुल्लित हो गया। उसके आनन्दका अनुभव पाठक ही कर लेवें मुझमें शक्ति नहीं हैं जो लिखकर बता सकू। उस रात्रिको कुमारने अपनी प्यारीसे अपने हर तरहके अपराधोंके लिये अति नम्र हो क्षमा मांगी तथा अपनेको बहुत दोष दिया। परंतु सुन्दरीने उसके भ्रमका जड़ मूलसे उच्छेद कर अपने ही पूर्वकृत कर्मोका दोष बतलाया। पश्चात् पति पत्नीने आनन्दसे रात्रि पूर्ण की। सुबह होते ही कुमार सुन्दरीसे बिदा होने लगे, तब सुन्दरी विनयपूर्वक प्रार्थना की कि मेरा ऋतुकालका समय है, सम्मा! है, कि मुझे गर्भ रह जाय, और आप युद्धमें जा रहे इसलिये समय भी आपको ज्यादा लगेगा इससे आप अपने पिता माताको अपने आनेकी सूचना करते जाइये, परंतु कुमार लज्जावश ऐसा करना पसन्द नहीं किया और कहा कि अगर ऐसा हुआ तो कोई हर्ज नहीं है। युद्धमें हमको ज्यादा समय नहीं लगेगा, हम शीघ्र आवेंगे। तुम किसी तरहकी चिंता नहीं करना। इत्यादि हर तरहसे संतोषित कर प्रेमालिंगन कर बिदा हुए सुबह होते होते अपनी सेनामें पहुंचे। यह हाल किसीको ज्ञात नहीं हुआ। वायुकुमार युद्धस्थलमें पहुंचे। लड़ाई हुई। अंतमें वायुकुमारने अपने प्रबल प्रतापसे शत्रुको पराजित किया और विजयलक्ष्मी
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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