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________________ रानी अंजनासुन्दरी [47 साथ कराना चाहती थी-प्रस्तावित सम्बंधपर अपना असंतोष प्रकट किया। स्वाभाविक लज्जावश सुन्दरीने प्रकट रूपसे इसका कोई विरोध नहीं किया, परंतु वायुकुमार जो इस संवादको सुन रहे थे अपना अपमान समझ दुःखित हुए। उनको यह भी भ्रम हो गया कि सुन्दरीको मेरे साथ सम्बन्ध करना स्वीकार नहीं है इसलिए उन्होंने सखी द्वारा मेरी निंदा सुनकर उसका विरोध नहीं किया। इस कल्पनाने कुमारके हृदयपर अपना अपना अधिकार जमा लिया तथा कुमारीकी तरफसे अरुचि उत्पन्न कर दी। मित्र सहित वे शीघ्र अपने स्थानपर आए और सुन्दरीसे सम्बन्ध न करनेकी प्रतिज्ञा की। उक्त गुप्त समाचार किसीको मालुम नहीं हुआ। दोनों राजाओंने पाणिग्रहणकी तिथि निश्चित करा ली थी। अतः नियत तिथिपर विवाहकी सब कार्रवाईयां होने लगीं। कुमारने बहुत इधर उधर किया, परंतु पिता माताके अनुरोध तथा सास ससुरके समझानेसे उन्होंने सुन्दरीके साथ संबंध करना स्वीकार कर लिया और नियत तिथिपर संबंध हो गया। यद्यपि कुमारने पिता माताके कहनेसे सुन्दरीसे शादी कर ली परंतु उनका चित्त उससे विरुद्ध हो रहा। सुन्दरी जब अपने पतिके भवनमें आई और स्वामीके रुष्ट होनेका समाचार ज्ञात हुआ तब उसे कितना दुःख हुआ वह लिखा नहीं जा सकता। वह भोजन, वस्त्र, श्रृङ्गार आदिसे उदासीन होकर दिन रात अपने सर्वस्व पतिको प्रसन्न करने में लगी रहती थी, परंतु स्वामीका सन्देह किसी तरह निवृत्त नहीं हुआ। उन्होंने कभी सुन्दरी पर प्रेमकी दृष्टिसे भी नहीं देखा।
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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