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________________ 40] ऐतिहासिक स्त्रियाँ जब गांडीव धनुष किसी राजकुमारसे नहीं उठा तो राजा द्रुपद कुछ चिंतातुर हो गये। इतनेमें ही ब्राह्मण वेषधारी युधिष्ठिर महाराजने अपने भाई अर्जुनको आज्ञा दी कि तुम शस्त्रविद्यामें अद्वितीय हो। उठो और धनुष्य चढाकर सर्वोत्तम गुण रूपकी राशि द्रौपदीको वरो। बस, भ्राताकी आज्ञानुसार अर्जुन महाराजने झट धनुष्यके निकट जाकर धनुष्यको चढ़ा लिया और ऐसा वेध किया मानो नियत मोतीपर निशाना मार दिया हो। इनके धनुष्यकी ऐसी घोर आवाज हुई कि जो सैंकड़ो हजारों तोपोंसे भी तेज थी। सब सभास्थ राजकुमारोंके कान भन्ना गये, मानों बहरे हो गये हों। बस, शीघ्र ही श्रीमती द्रौपदीजीने वरमाला (पुष्पकी माला) अर्जुनके गलेमें अति प्रसन्न चित्तसे डाल दी। __ कोई कोई ऐसा कहते हैं कि द्रौपदीजीके पांचों पांडव पति थे, यह बात सर्वथा गलत और जैनशासनसे विरुद्ध है। ये तो परम सती थी। विवाह एकके ही साथ हो सकता है। इनके एक अर्जुन ही पति थे, द्रौपदीजी बड़ी चतुर थी। उन्होंने प्रथम ही सर्व राजकुमारोंसे विशेष अर्जुनको ही समझ लिया था, औरोंकी चमक दमककी परवाह न कर गुणोंको ही ग्रहण किया था। ___ इस संबंधको देख दुर्योधनादि बड़ेर राजकुमार बहुत बिगड़े, बहुत युद्धादि करने लगे, परंतु रञ्चमात्र भी सफलीभूत न हुये। अर्जुन तथा द्रौपदीके भाई धृष्टदमनने सबको परास्त कर भगाया। इस युद्धादिसे द्रौपदीजी भी नहीं घबराई, उन्होंने भी साथ साथ पति तथा भाईको सहायता दी। (पूर्वकालमें राजकन्या भी शस्त्रविद्याका अभ्यास रखती थी) अंतमें नियत् मिती पर द्रौपदीकी पाणीग्रहण विधि सानन्द सम्पूर्ण हो गई
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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