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________________ महारानी चेलनादेवी [27 ___ पश्चात् भोजन कराया गया। महाराजने अपने शिष्यों समेत खूब अच्छी तरह भोजन किया। जब जाने लगे तब देखा कि कुछ जूतोंका पता नहीं है। महलके अंदरसे जहां सैकड़ों संगीनदारोंका दिन रात पहरा रहता हैं जूते कौन ले जा सकता है? इसलिये महारानीसे पूछा गया। महारानीने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया कि आप तो बुद्धि रखते हुए भी इस तरहके प्रश्न करते हैं। आखिर सब हाल विदित हो गया और अपमानित होकर राजगुरुने अपने स्थानको प्रस्थान किया। उनको अपने गप्पाष्टको का पूरा प्रायश्चित मिला महाराज श्रेणिकको अपने प्रसिद्ध विद्वान् राजगुरुकी इस तरह कार्य व मूढ़ता देख बौद्धधर्मसे कुछ अश्रद्धा हो गई। महारानीने यह देख अपने कार्यकी सफलताके चिह्न समझ और भी उत्तम उपायोंसे काम लेना आरम्भ किया। एक समयका वर्णन है, जब कि बौद्धधर्मावलम्बी साधुगण एक झोंपड़ीमें बैठे परमेश्वरकी ओर ध्यान लगाये थे, राजा-रानी सहित वहांसे निकले। जिन धर्मकी परम भक्तियुक्त शुद्ध हृदया महारानी चेलनाका इन पहुंचे हुए साधुओंकी भी परीक्षा करनेका विचार हुआ। उन्होंने अपने अनुचरी द्वारा उस झोंपड़ीमें अग्नि लगवा दी। अग्निको प्रज्वलित देख साधुओंने ध्यान वगैरह सब छोड़ भागना आरंभ किया। ____ अंतमें क्षणमात्रमें सारी झोंपड़ीं खाली हो गई। राजा और रानी दोनों इस मनोहर दृश्यको छिपे हुए देख रहे थे उसी समय वह थोड़ीसी अग्नि शांत की गई। बड़े विद्वान् और तपस्वी महात्माओंकी बगुलाभक्ति इस तरह दूसरे वक्त भी जाहिर हो गई। इस तरह अपने धर्मकी हंसी उड़ाते देख महाराज महारानीसे अवश्य रुष्ट हुए। तो भी महारानी अपने कार्यमें तत्पर रही,
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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