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________________ ऐतिहासिक स्त्रियाँ सौर्यपुरके यदुवंशीय राजा समुद्रविजय और रानी शिवादेवी के पुत्र बाइसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथस्वामी, जब तरुणावस्थाको प्राप्त हुए, तब इनके कुटुम्बियोंने भोजवंशियोंको श्री राजमती और श्री नेमिनाथका सम्बन्ध करनेके लिये संदेशा भेजा। यह संबंध सबको रुचिकर जंचा। और विवाहकी तिथि निश्चित होकर टीका भी चढ़ गया। श्री नेमिनाथस्वामी उस समय सारे भूमण्डलके पुरुषोसे श्रेष्ठत्तम पुरुष थे। इनके जन्मके छः महीने पूर्व ही माता शिवादेवीके यहां रत्नोंकी वर्षा हुई थी। तथा अनेक देव देवियोंने सेवा पूजा की थी। भगवान नेमिप्रभु जन्मसे ही मति, श्रुति और अवधि इन तीनों ज्ञानोंके धारी थे। तथा अत्यन्त शांतचित्त, इन्द्रियविजयी और पराक्रमी थे। ऐसे अद्वितीय गुणयुक्त, त्रैलोक्यनाथ पतिके प्राप्त होनेकी आशासे श्री राजुलदेवीके हर्षका पारावार न रहा। यद्यपि अभी विवाह संस्कार पूरा नहीं हुआ था केवल टीका, कंकण आदि शुभ सूचक रीतियां ही हो पाई थी परंतु श्री राजुलदेवी अपने अन्तरंगमें निजको सर्व प्रकारसे श्री नेमिनाथस्वामीको अर्पण कर चुकी थी। धीरे धीरे पाणिग्रहणका दिन आया। और बड़े ठाटबाटसे बारात लगनेकी तैयारी हुई। इस समय राजुलदेवी महलके झरोखेपर बैठी बैठी अपने आनेवाले पतिके गुणोंका विचार करके परम हर्षके मग्न हो रही थी। परंतु पाप पुण्यकी लीला बड़ी प्रबल है। इस समय अशुभोदयने राजुलदेवीको कुछका कुछ दिखा दिया। और उनके साहसकी भलीभांति परीक्षा की। विवाहका समय निकट होनेपर श्री नेमिनाथस्वामी विशाल रथ पर सवार हो अनेक महाराजाओं सहित सुसराल जा रहे थे
SR No.032862
Book TitleAetihasik Striya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendraprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year1997
Total Pages82
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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