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________________ * नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान दोहा . चौवीसौं जिनदेव प्रभु, ग्रह सम्बन्ध विचार। पुनि पूजों प्रत्येक तुम, जो पाऊं सुख सार। . इत्याशीर्वादः। सूर्यग्रह अरिष्टनिवारक पद्मप्रभु पूजा सोरठा-पूजों पदम जिनेन्द्र, गोचर लग्न विषे यदा। सूर्य करे दुख दंद, दुख होवे सब जीवको॥ _ अडिल्ल छन्द पंचकल्याणक सहित, ज्ञान पंचम लसैं। समोसरन सुख साध, मुक्तिमांहि वसैं॥ आह्वानन कर तिष्ठ सन्निधी कीजिये। ... सूरज ग्रह होय शांत, जगत सुख लीजिये। ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रोपद्मप्रभु जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनम्, अत्र मम सन्निहितो भवर वषट् सन्निधिकरणं / परिपुष्पांजलि क्षिपेत् / अथाष्टक (छन्द त्रिभंगी) सोनेकी झारी सब सुखकारी, क्षीरोदधि जल भर लीजे। भव ताप मिटाई तृषा नसाई, धारा जिन चरनन दीजे॥ पद्मप्रभु स्वामी शिवमग-गामी, भविक मोर सुन कुंजत हैं। दिनकर दुख जाई पाप नसाई, सब सुखदाई पूजत हैं। ____ॐ ह्रीं श्री सूर्यग्रहारिष्टनिवारक श्रीपद्मप्रभु जिनेन्द्राय पंचकल्याणक प्राप्ताय जलं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.032861
Book TitleNavgrah Arishta Nivarak Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalmukund Digambardas Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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