SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 47
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान _ [45 . गोलेकी सुडोल गिरियां कर, केशरमें रंग लेऊं। तम अज्ञानके नाशन कारण युग चर्णन तल सेऊ॥ दोष अठारह रहित जिनेश्वर, छियालीस गुण धारे। सदा पूजू तिन चरण कमलको मन वच काय सम्हारे॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय दीपं निर्वपामीति स्वाहा। उत्तम बुरादा चन्दनका ले जलसे मैं धोलाऊं। कर्म दहनकू अगनी ऊपर, तुमरे चरण ढिग खेऊ॥ // दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। मीठी बादामकी बीजी, अच्छी और लोंग धोलेऊँ। तुमकू अर्पण करूं प्रभुजी, जासों मोक्षपति होऊँ।। // दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय फलं निर्वपामीति स्वाहा। जल चंदन अक्षत पुष्प लेकर, नैवेद्य दीप विचारो। - धूप अरु फल मिलाय अर्पण करूं, भव दुःखसे उद्धारो॥ ॥दोष अठारह. // सदा.॥ ॐ ह्रीं श्री परमहितमितहितोपदेशी जिनेन्द्राय अर्घ निर्वपामीति स्वाहा। जयमाला (पद्धड़ी छन्द) जय जय अहं तदेव, नित युगल चरणको मिले सेव। जय सिद्ध परमेष्ठिो गुण निधान, तुम चरण यजूं कीजे कल्याण॥ जय सर्वसाहु मुझको निवाहु, मैं पूजूं पद धर उर उछाहु। जिन कथित धर्म जग मांहि सार, वंदू मन वच तन बार बार //
SR No.032861
Book TitleNavgrah Arishta Nivarak Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalmukund Digambardas Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy