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________________ 20 ] नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान गुरु अरिष्टनिवारक श्री अष्ट जिनपूजा मन वच काया शुद्ध कर, पूजों आठ जिनेश। गुरु अरिष्ट सब नाश हो, उपजे सुख विशेष॥ छप्पय ऋषभदेव जिनराज, अजित जिन संभवस्वामी। . अभिनन्दन जिन सुमति, सुपारस शीतल स्वामी॥ श्री श्रेयांस जिनदेव, सेव सब करत सुरासुर। - मनवांछित दातार, मारजित तीन लोक गुरु // संवोषट् ठः ठः तिष्ठ सुसन्निधि हूजिये। गुरु अरिष्टके नाशको, आठ जिनेश्वर पूजिये। ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनः अत्र अवतरर संवौषट् / अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं। अत्र मम सन्निहितो भवर वषट्। .. .. .... अथाष्टक . . उज्वल जल लीजे, मन शुचि कीजे हाटकमय भृङ्गार भरं। जिन धार दिवाई, तृषा नसाई, भवजल निधि वे पार परं॥ ऋषभ अजित सम्भव, अभिनंदन, सुमति सुपारस नाथ वरं। शीतलनाथ श्रेयांस जिनेश्वर, पूजत सुरगुरु दोष हरं॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। मलयागिर चंदन दाह निकन्दन, कुमकुम शुभ ले घनसारं। चरचों जिन चरनं, भव तप हरनं, मनवांछित सब सुख निकरं। ऋषभ.॥ ॐ ह्रीं गुरुअरिष्टनिवारक श्री अष्टजिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।
SR No.032861
Book TitleNavgrah Arishta Nivarak Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalmukund Digambardas Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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