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________________ - नवग्रह अरिष्टनिवारक विधान [17 विमलनाथ अनंतनाथ, सु धर्मनाथ जु शांत ये। कुन्थ अरह जु नमिय जिन महावीर आठों जिन जजे॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो जलं निर्वपामीति स्वाहा। सुरभि सुमरत लेऊं चंदन, घिसों कुमकुम संग ही। जिन चरन चरचत मिटे ग्रीषम, मोह ताप जु भाग ही॥ ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। अक्षत अखंड उभय कोट समान शुभ जू अति घने। ले कनक थार भराय भविजन, पुज देत सुहावने // ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। मन्दार माली मालती मच कुन्द मरुवो मोतिया। कमल कुन्द कुसुम करना, काम बाण जु घातिया॥ // विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। घृत शुद्ध मिश्रित शर्करामृत, करहु विंजन भावसों। ग्रह शांति के होत जिनके, चरन चरचों चावसों॥ ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। मणि जडित हाटक दीप सुन्दर खातका घनसार है। सर्पि सहित शिखा प्रकाशित, आरती तमहार है। ॥विमलनाथ.॥ ॐ ह्रीं बुधग्रहारिष्टनिवारक श्रीअष्टजिनेभ्यो दीपं निर्बपामीति स्वाहा।.
SR No.032861
Book TitleNavgrah Arishta Nivarak Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalmukund Digambardas Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages52
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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