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________________ द्वितीय चर्चा : क्षायोपशमिक भाव : आगम-प्रमाण विशेष है, तथापि वह सम्यक्त्व होने पर ही होती है, इसीलिए इसे बाह्य चिह्न कहा है। 'जो यह शुद्धज्ञानस्वरूप आत्मा है, सो मैं ही हूँ और जो राग-द्वेषादि विकारभाव हैं, औदयिकभाव हैं, वे मोहनीय आदि कर्मोदयजन्य हैं, कर्म के निमित्त से उत्पन्न होते हैं, वह मेरा स्वरूप नहीं है।' इस प्रकार स्व-पर मूलक भेदविज्ञान से ज्ञानमात्र के आस्वादन को ज्ञान की अनुभूति कहते हैं, वही आत्मा की अनुभूति है, जो शुद्धनयात्मक है। ___ इस स्वानुभूति के साथ नियम से ऐसा श्रद्धान उदित होता है कि द्रव्यकर्म, नोकर्म, भावकर्म (रागादिभाव) से रहित अनन्त ज्ञान-दर्शन-वीर्य-सुखरूप अनन्तचतुष्टय ही मेरा मूल स्वरूप है, अन्य सब भाव, संयोगजनित हैं -ऐसी आत्मा की अनुभूति, जो सम्यक्त्व का मुख्य चिह्न है, स्वानुभव-प्रत्यक्ष-प्रमाणरूप भावश्रुतज्ञान से जानी जाती है। यहाँ अपनी परीक्षा तो अपने स्वसंवेदन की प्रधानता से होती है और पर की परीक्षा पर के अन्तरंग में होने से पर के वचन व काय की क्रिया से होती है। यह व्यवहार है, परमार्थ तो सर्वज्ञ जानते हैं। अपने ज्ञान के द्वारा स्वयं के एवं अन्य के श्रद्धान का निर्णय करना, दोनों व्यवहार हैं। इस आत्मानुभूति में स्वानुभूत्यावरण कर्म के क्षयोपशम के साथ, मिथ्यात्व (दर्शनमोह) एवं अनन्तानुबन्धी कषाय (चारित्रमोह) का अनुदय (उपशम, क्षय या क्षयोपशम) नियम से होता ही है। इसी को निश्चय तत्त्वार्थश्रद्धानरूप निश्चय सम्यग्दर्शन कहते हैं। इस अनुभूति की उपलब्धि में सर्वज्ञकथित स्यात्-पद-मुद्रांकित शब्दब्रह्मरूप परमागम का सेवन, सुयुक्तियों का अवलम्बन एवं स्वानुभवी ज्ञानियों का उपदेश ही निमित्त होता है, अन्य कुछ नहीं। पश्चात् स्वयमेव स्वानुभव-प्रत्यक्ष से परीक्षा करके प्रमाण करना होता है। सम्यग्दष्टि जीवों में निश्चय सम्यक्त्व होने के प्रमाण स्वरूप अन्य बाह्य व्यवहार चिह्न भी प्रगट होते हैं। जैसे - 1. प्रशम अर्थात् अनन्तानुबन्धी क्रोधादि कषाय के उदय का अभाव होना। 2. संवेग अर्थात् धर्म और धर्म के फल में परम उत्साह, परमेष्ठियों में प्रीति, साधर्मी अनुराग होना।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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