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________________ क्षयोपशम भाव चर्चा उपचार कर लेने से उपशमक और क्षपक संज्ञारूप व्यवहार की सिद्धि हो जाती है। इसका खुलासा (धवला, पु. 1, सूत्र 16, पृष्ठ 183) पर अपूर्वकरण गुणस्थान समझाते हुए किया गया है। (15) धवला, पु. 1, सूत्र 16, पृष्ठ 183 शंका - क्षपण-निमित्तक परिणाम भिन्न हैं और उपशमन-निमित्तक परिणाम भिन्न हैं; उनमें एकत्व कैसे हो सकता है? ___समाधान - नहीं, क्योंकि क्षपक और उपशमक परिणामों में अपूर्वपने की अपेक्षा साम्य होने से एकत्व बन जाता है। शंका - पाँच प्रकार के भावों में से इस अपूर्वकरण गुणस्थान में कौनसा भाव पाया जाता है? समाधान - क्षपक के क्षायिक और उपशमक के औपशमिक भाव पाया जाता है। शंका - इस गुणस्थान में न तो कर्मों का क्षय ही होता है और न उपशमन ही होता है - ऐसी अवस्था में यहाँ पर क्षायिक या औपशमिक भाव का सद्भाव कैसे हो सकता है? समाधान - यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि इस गुणस्थान में क्षायिक और औपशमिक भाव का सद्भाव उपचार से माना गया है। समीक्षा - सम्यग्दर्शन की अपेक्षा क्षपकश्रेणीवाला क्षायिकभावसहित अर्थात् क्षायिक सम्यक्त्वी ही होता है और उपशम श्रेणीवाला औपशमिक तथा क्षायिकभाव सहित अर्थात् औपशमिक सम्यक्त्व तथा क्षायिक सम्यक्त्व, दोनों ही सम्यक्त्वों से उपशम श्रेणी चढ़ सकता है। ___एक और विशेष बात, जो यहाँ ध्यान देने योग्य है कि संयत' शब्द का प्रयोग छठे से दसवें गुणस्थान तक के सकल संयमी जीवों के लिए ही किया जाता है, उपशान्त कषाय आदि ऊपर के गुणस्थानों में संयत' शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है, क्योंकि संयम धारण करने का फल जो पूर्ण अकषायरूप वीतरागता है, वह वहाँ प्रगट हो चुकी है।
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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