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________________ 28 क्षयोपशम भाव चर्चा वर्णन किन ग्रन्थों से जानना चाहिये। धवला आदि ग्रन्थों में इस प्रकार की चर्चा है क्या? जैसे, मतिज्ञान आदि ज्ञानगुण/ज्ञानोपयोग के भेद हैं, चक्षुदर्शन आदि दर्शनगुण/दर्शनोपयोग के भेद हैं, वैसे शुभोपयोग आदि चारित्रगुण के भेद हैं; क्या ऐसा कह सकते हैं? 22. क्या शुभोपयोग आदि से श्रद्धागुण भी सम्बन्धित हैं? तथा चारित्रगुण में परिणति-उपयोग की व्यवस्था कैसे बनेग? जैसे, शुद्धोपयोग के समय परिणति में अबुद्धिपूर्वक शुभराग तथा शुभोपयोग के समय भी एक-दो-तीन कषायचौकड़ी के अभावरूप शुद्ध-परिणति होती है - ऐसा स्वीकार कर सकते हैं क्या? यदि हाँ तो इसका कोई आगम-प्रमाण बताइये? ____ 23. पुनश्च शुभोपयोग के सम्बन्ध में एक शंका और भी यह है कि शुभोपयोग यदि क्षयोपशम-भाव है तो उसका दूसरा नाम मिश्र-भाव भी है तो क्या इसे मिश्रोपयोग भी कहा जा सकता है? तो फिर मिश्रोपयोग से तात्पर्य क्या होगा? मिश्रोपयोग अर्थात् राग-वीतराग का मिश्रपना शुद्ध-अशुद्ध-उपयोग का मिश्रपना मानना होगा तो क्या यह उचित होगा? 24. पुनः प्रश्न होगा कि क्या दो उपयोग एक साथ हो सकते हैं? यदि हाँ तो उसका शास्त्राधार क्या है? यदि नहीं तो मिश्रोपयोग कैसे सिद्ध होगा? इसे ऐसे भी मान सकते हैं कि यहाँ दो उपयोग मिल कर मिश्र नहीं हुए हैं, बल्कि मिश्ररूप एक ही उपयोग है, जो दोनों उपयोगों से भिन्न कोई तीसरी जाति का ही है। 25. इसमें एक शंका होती है कि यहाँ हम अंश-कल्पना (येनांशेण..... आदिरूप) कर सकते हैं क्या? तब वह अंश-कल्पना, कल्पना ही होगी या सत्य भी। यदि कल्पना है तो उससे क्या लाभ है और यदि सत्य है तो उन्हें अलगअलग भाव ही मान लेने में क्या आपत्ति है? ____ 26. अथवा उसमें जो शुद्ध-वीतराग-अंश है, वह संवर-निर्जरा का कारण है और जो अशुद्ध-शुभाशुभ-राग-अंश है, वह आस्रव-बन्ध का कारण है - ऐसा मान लेंवे अथवा मिश्ररूप भाव या उपयोग, वह सम्पूर्णरूप से आस्रव-बन्ध का भी और संवर-निर्जरा का भी कारण मानें। लेकिन ऐसा मानने पर पण्डित टोडरमलजी के इस वचन के साथ विरोध आता है कि एक ही भाव, आस्रव-बन्ध का कारण
SR No.032859
Book TitleKshayopasham Bhav Charcha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemchandra Jain, Rakesh Jain
PublisherAkhil Bharatvarshiya Digambar Jain Vidwat Parishad Trust
Publication Year2017
Total Pages178
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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